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माँ की महिमा
July 31, 2017
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।। माँ की महिमा ।।
जिसे कोई उपमा न दी जा सके उसका नाम है ‘माँ’।
जिसकी कोई सीमा नहीं उसका नाम है ‘माँ’।
जिसके प्रेम को कभी पतझड़ स्पर्श न करे उसका नाम है ‘माँ’।
ऐसी तीन माँ हैं —1. परमात्मा …… 2. महात्मा ……..और 3. माँ।
हे जीव! प्रभु को पाने की पहली सीढ़ी ‘माँ’ है।
जो तलहटी की अवमानना करे वो शिखर को प्राप्त करे यह शक्य नहीं।
ऐसी माँ की अवमानना कर दिल दुखाकर हम मोक्ष पा सकें यह शक्य नहीं । (1)
माँ पूर्ण शब्द है। ग्रन्थ है। महाविद्यालय है। यह मंत्र बीज है।
हर स्रजनता का आधार है। यह माँ शब्द माँ की सागर से भी अधिक गहराई को,
माँ की हिमालय से भी अधिक ऊँचाई को,
माँ की आसमान से भी अधिक असीमता को एवं धरती से भी अधिक माँ की सहनशीलता को दर्शाता है।
याद रखना माँ को जानने वाला ही महात्मा को जान सकता है।
माँ को जानने वाला ही परमात्मा को जान सकता है। (2)
माँ और क्षमा, दोनों एक हैं क्योंकि, माफ करने में दोनों एक हैं।
सुविधा के लिये जुदा होना पड़े, उसमें कोई हर्ज नहीं है किन्तु स्वभाव के कारण,
जुदा होना पड़े वो तो सबसे बड़ी शर्म है। (3)
माँ ! पहले आँसू आते थे, और तू याद आती थी।
आज तू याद आती है, और आँसू आते हैं।।
मात पिता क्रोधी हैं, पक्षपाती हैं, शंकाशील हैं, ये सारी बातें बाद की हैं,
पहली बात तो ये है कि… वो माँ बाप हैं।
संसार की दो बड़ी करुणता…….. माँ बिन घर……. और घर बिना माँ ……!!! (4)
ऊपर जिसका अंत नहीं, उसे आसमां कहते हैं जहाँ में जिसका अंत नहीं,
उसे माँ कहते हैं तूने जब धरती पर,
पहला श्वाँस लिया तब तेरे माता—पिता तेरे पास थे,
माता—पिता अंतिम श्वाँस लें, तब तू उनके पास रहना…. जब छोटा था तब,
माँ की शय्या गीली रखता था, अब बड़ा हुआ तो, माँ की आँखे गीली रखता है।
रे पुत्र! तुझे माँ को गीलेपन में रखने की आदत हो गई है। (5)
माँ तूने तीर्थंकरों को जना है, संसार तेरे ही दम से बना है।
तू मेरी पूजा है, मन्नत है मेरी, तेरे ही कदमों में जन्नत है मेरी…..!
बंटवारे के समय, घर की हर चीज के लिये झगड़ा करने वाले बेटे,
दो चीज के लिये उदार बनते हैं, जिसका नाम है माँ — बाप ……. (6)
डेढ़ किलो दूधी, डेढ़ घंटे तक उठाने से, तेरे हाथ दुख जाते हैं।
माँ को सताने से पहले, इतना तो सोच ……. तुझे नौ नौ महीने पेट में कैसे उठाया होगा ?
जो मस्ती आँखों में है, मदिरालय में नहीं, अमीरी दिल की कोई, बड़े महालय में नहीं,
शीतलता पाने को, कहाँ भटकता है मानव! जो है माँ की गोद में, वो हिमालय में नहीं ……! (7)
बचपन के आठ साल तुझे, अंगुली पकड़कर जो माँ—बाप, स्कूल ले जाते थे,
उस माँ—बाप को, बुढ़ापे के आठ साल,
सहारा बनकर मन्दिर ले जाना….. शायद थोड़ा सा तेरा कर्ज,
थोड़ा सा तेरा फर्ज पूरा होगा।
माँ — बाप को सोने से न मढ़ो, चलेगा।
हीरे से न जड़ो, तो चलेगा।
पर उसका जिगर जले और अंतर आँसू बहाये, वो कैसे चलेगा ? (8)
जिन बेटों के जनम पर माँ—बाप ने,
हंसी खुशी से पेड़े बाँटे……… वही बेटे जवान होकर कानाफूसी से,
माँ—बाप को बाँटें……. हाय! कैसी करुणता ?
माँ—बाप की आँखों में, दो बार आँसू आते हैं लड़की घर छोड़े तब…. लड़का मुँह मोड़े तब…. (9)
घर में वृद्ध माँ—बाप से बोलें नहीं, उनको संभालें नहीं,
और वृद्धाश्रम में दान करें, जीवदया में धन प्रदान करें,
उसे दयालु कहना……… वो दया का अपमान है चार वर्ष का तेरा लाड़ला जो तेरे प्रेम की प्यास रखे।
तो पचास वर्ष के तेरे माँ—बाप तेरे प्रेम की आस क्यों न रखें ?
माँ — बाप की सच्ची विरासत, पैसा और बंगला नहीं,
प्रामाणिकता और पवित्रता है…….. बचपन में जिसने तुझको पाला,
बूढ़ेपन में उसको तूने नहीं संभाला, तो याद रखना…….. तेरे भाग्य में भड़केगी ज्वाला। (10)
जिस दिन तुम्हारे कारण माँ— बाप की आँख में आँसू आते हैं,
याद रखना ……. उस दिन तुम्हारा किया सारा धर्म आँसू में बह जाता है।
आज तू जो कुछ भी है, वो ‘माँ- की बदौलत है क्योंकि उसने तुझे जन्म दिया।
माँ तो देवी है, गर्भपात कराके, वो राक्षसी नहीं बनी, इतना तो सोच !
पत्नी पसंद से मिल सकती है, माँ पुण्य से ही मिलती है।
पसंद से मिलने वाली के लिये, पुण्य से मिलने वाली को मत ठुकराना। (11)
पेट में पाँच बेटे जिसको भारी नहीं लगे थे,
वो माँ …….. बेटों के पाँच फ्लैट में भी भारी लग रही है।
बीते जमाने का यह श्रवण का देश है! कौन मानेगा ?
कबूतर को दाना डालने वाला बेटा अगर माँ—
बाप को दबाये तो ……. उसके दाने में कोई दम नहीं।
जीवन के अंधेरे पथ में,
सूरज बनकर, रोशनी करने वाले माँ— बाप की जिन्दगी में,
अंधकार मत फैलाना …….. (12)
जिस माता ने जनम दिया है, उस माता को भूल गया जिस माता ने बड़ा किया है,
उस माता से रूठ गया तकलीफ कितनी उसने सही थी नौ महीने गर्भ में लेकर फिरी थी,
फिर भी तू उस माँ को भूल गया तू,
अपनी ही माँ से रूठ गया याद करो उस बचपन को, उसने ही तुझको पाला था, (13)
तेरी माता तुझको सुलाने से पहले कभी ना सोयी थी जब जब तू बीमार हुआ
तो उसकी आँखे रोई थीं खुद ने न खाया माँ ने तुझको खिलाया,
सारी सारी रात पालने में झुलाया, पालने में रोया तो गले से लगाया,
उंगली पकड़कर चलना सिखाया माता के उन उपकारों को कौन कभी चुकायेगा,
जो जी माँ की ना सुनेगा……… (14)
जिस माता ने गीले से सूखे में तुझे सुलाया था, जब जब था मलमूत्र में,
तब तब उस माता ने धोया था, नफरत कभी भी उसने न की थी,
तेरी खुशी में वो हरदम हँसी थी, फिर भी उनको भूल गया तू,
अपनी ही माँ से रूठ गया तू उस माता की मेहनत को,
तू कभी भी भूल ना पायेगा, जो माँ की ना सुनेगा… (15)
माता तेरी उंगली पकड़कर स्कूल में छोड़ने आती थी देव—गुरु को वंदन करना
सब कुछ वो सिखाती थी तुझे पाठशाला में धरम सिखाया,
धरम के भावों को खूब बढ़ाया बड़े होते ही तू बना धन वाला,
माँ—बाप को तूने घर से निकाला ऐसा बेटा डनलप के गद्दों में सो न पायेगा जो माँ की ना सुनेगा….. (16)
माँ की गोद में सातों बेटे यूं ही बड़े हो जाते हैं
(मगर) सातों बेटे अपने महल में माँ को नहीं रख पाते हैं
कपूत जिसे माँ की परवाह नहीं है, नरक में भी उसके लिये जगह नहीं है
माँ का अनादर न माफ करेगा, माँ का आशीष जो पायेगा
वो सीधा स्वर्ग में जायेगा… जो माँ की ना सुनेगा…
बेटे की शादी होते ही माता को भूल जाता है,
घर वाली की बातें सुनकर माँ से अलग हो जाता है
बहू सास को परेशान करेगी, मगर बहू भी एक दिन सास बनेगी (17)
जहर को घोला जो तो जहर ही मिलेगा,
कांटों को बोया तो कांटे ही पायेगा, दुनिया में सब कुछ मिलेगा,
मिले न ममता मात की… जो माँ की ना सुनेगा…
बुढ़ापे में मात—पिता का सपना जब टूट जाता है,
दौलत के संग मात—पिता का बंटवारा हो जाता है एक बेटा अपने घर माँ को ले जाये,
एक बेटा अपने घर बाप को ले जाये एक होते भी हो गये पराये,
दोनों बिछड़कर आंसू बहाये जो बबूल को बोयेगा,
वो आम कहां से खायेगा… जो माँ की ना सुनेगा…
एक बेटा अपने बेटे को भेंट में गाड़ी देता है
वो ही बेटा मात—पिता को थाली तक नहीं देता है
फिर भी वो माता कभी खफा नहीं होती, जुबां से कभी बद्दुआ नहीं देती (18)
माता तो तेरी ममता की ज्योति,
माता के आंसू हैं सच्चे मोती उनके दिल को ठेस लगा के,
बेटा संभल न पायेगा… जो माँ की ना सुनेगा…
मात—पिता की तबियत बिगड़े तो बेटे को तो समय नहीं
धंधापानी छोड़ के माता को मिलने का कोई धरम नहीं
अगर सास—ससुर की तबियत बिगड़ी,
टिकिट निकाली हवाई जहाज की शरम तो करो ओ माँ के सपूतों,
अभी भी समय है पहचानो माँ को अपने ही स्वार्थों के खातिर माता को क्यों भूल गया..
जो माँ की ना सुनेगा….. मात—पिता जब जिंदा होते हाल कभी ना पूछते हैं
मात—पिता जब स्वर्ग चले जो शोकसभा बुलवाते हैं (19)
अखबारों में नाम छपाया,
माता—पिता की छवि को सजाया दीप जलाया और धूप जलाया,
बेटे ने आंसू का सागर बहाया पर मगर के आंसू को तो,
ह
र कोई पहचानेगा…. जो माँ की ना सुनेगा….
चाहे पूजा पाठ करो और व्याख्यान सुन लो तुम भाई चाहे कितना धरम करो
व्यर्थ है जो माँ की ममता ना पाई चाहे बड़ी तुम तपस्या भी कर लो,
चाहे लाखों का दान भी कर लो चाहे चले जाओ पावापुरी जी चाहे चले जाओ
सम्मेदशिखरजी जिसने नहीं जीता माता को,
प्रभुवर को क्या जीतेगा जो माँ की ना सुनेगा…. (20)
बचपन में तो पहला शब्द तूने माँ माँ बोला था
तब ही तेरी माँ का मन एक मोरनी बनकर डोला था
तेरे पीछे वो तो पागल बनी थी, ममता की छाँव का बादल बनी थी,
ऐसी ही माता को भूल ना जाना, ममता के फर्ज को जल्दी चुकाना स्वर्ग है
माँ के चरणों में, जो समझेगा वो पायेगा जो माँ की ना सुनेगा….. (21)
इस दुनिया को माँ की महिमा सबको आज सुनानी है माँ और बेटे के रिश्ते की ये तो अमर कहानी है
माता ने बेटे को जनम दिया, बाप ने बेटे का सब कुछ किया,
तूने उसका क्या बदला दिया, किसके भरोसे छोड़ दिया।
माता—पिता को दु:ख देके, कहां से तू सुख पायेगा (22)
जो माँ की ना सुनेगा….. चाहे लाखों कमा लो चाहे करोड़ों भी कमा लेना जिसने माता को नहीं जीता,
धिक्कार है उसका जीना गर्व ना कर तू धन का ओ पगले,
गाड़ी ये बंगले यहीं तो रहेंगे माता—पिता की ले ले दुआई,
जीवन बनेगा तेरा सुखदाई जिसने नहीं ली माँ की दुआयें,
हरदम वो पछतायेगा जो माँ की ना सुनेगा…..
जो माँ की ना सुनेगा माता को जो प्यार करें,
वो लोग निराले होते हैं जिसे माँ का आशीर्वाद मिले,
वो किस्मत वाले होते हैं। चाहे लाख करो तुम पूजा,
और तीरथ करो हजार मगर माँ—बाप को ठुकराया तो सब कुछ है बेकार…. जो माँ की ना सुनेगा,
तेरी कौन सुनेगा जो माँ को ठुकरायेगा, दर—दर की ठोकर खायेगा… जो माँ की ना सुनेगा…. (23)
माँ—बाप को भूलना नहीं भले ही हर बात भूल जाइये,
माँ—बाप को भूलना नहीं। अनगिनत है उपकार इनके,
यह कभी भूलना नहीं।। धरती के सभी देवताओं को पूजा,
तभी आपकी सूरत देखी। इस पवित्र माँ के दिल को,
कठोर बनकर तोड़ना नहीं।। अपने मुँह की कौर निकाल,
तुम्हें खिलाकर बड़ा किया। इन अमृत देने वालों के सामने,
जहर कभी उगलना नहीं।। खूब लाड़ प्यार किया तुमसे,
तुम्हारी हर जिद पूरी की। ऐसे प्यार करने वालों से,
प्यार करना कभी भूलना नहीं।। चाहे लाख कमाते हो,
लेकिन माँ—बाप खुश न रहें तो। लाख नहीं सब खाक है,
यह मानना भूलना नहीं।। भीगी जगह में खुद सोकर,
सूखे में सुलाया तुम्हें। ऐसी अनमोल आँखों को,
भूल से कभी भिगोना नहीं।। फूल बिछाए प्यार से,
जिन्होंने तुम्हारी राहों पर। ऐसी चाहना करने वालों के,
राहों में कांटा कभी बनना नहीं।। दौलत से हर चीज मिलेगी,
लेकिन माँ—बाप मिलते नहीं। इनके पवित्र चरणों के प्रति,
सम्मान कभी भूलना नहीं।। संतान सेवा चाहे,
तो संतान बनकर सेवा करें। जैसी करनी वैसी भरनी,
यह न्याय कभी भूलना नहीं।। (24)
कलयुगी बेटा (मालवी कविता) जीवता माँ बाप ने रोटी नहिं देवे,
मरिया पछे लाडू जीमावे है जीवता माँ बाप ने पाणी नहीं पियावे,
मरीया पछे, प्याऊसा खोलावे है जीवता माँ बाप सु मुंडे नहीं बोले,
मरीया पछे आंसुड़ा ढुलकावे है जीवता माँ बाप ने कपड़ा नहीं देवे,
मंरीया पछे सालां ओढ़ावे है जीवता माँ बाप से इलाज नहीं करावे,
मरीया पछे हॉस्पिटल बंधावे है जीवता माँ बाप ने खर्चा नहीं देवे,
मरीया पछे रुपया उछाले है। (25)
कल और आज कल पापा, मुझे नये जूते चाहिये ! ठीक है ला देंगे।
नयी पुस्तकें, पेन, टिफिन बाक्स भी। ठीक है मुन्ना।।
पापा कैरम भी आपसे कहा था। ठीक है मुन्ना।।
कुछ समय बाद ओह पापा, सभी कुछ ले आये ! मेरे अच्छे पापा।
तुम खुश हो, मुझे और चाहिये ही क्या, मुन्ना ? आज मुन्ना,
सुनो तो……! जल्दी कहो पापा, दफ्तर का वक्त हो रहा है!
बेटा, वो चश्मे का फ्रेम टूट गया है! सुधरवा लाते! इतनी जरुरत क्या है!
पापा चश्मे की ? बेटे ! बैठे……बैठे यह रामचरित मानस…… ?
कितनी बार पढ़ोगे, पापा उसे ? फालतू में चश्मा सुधरवाने में पैसे लगेंगे,
कोई जरूरी बात तो नहीं है न ? नहीं बेटा, तू दफ्तर जा….. वक्त हो रहा है।
प्रस्तुति एवं संपादन – आर्यिका चंदनामती
संग्रहकर्त्री – श्रीमती सुमन जैन,इन्दौर – म. प्र. ( अध्यक्षा- अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महिला संगठन )
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