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ज्येष्ठ जिनवर पूजा
August 19, 2020
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jambudweep
ज्येष्ठ जिनवर पूजा
ज्येष्ठ जिनवर व्रत में
नाभिराय कुल मण्डन मरुदेवी उर जननं।
प्रथम तीर्थंकर गाये सु स्वामी आदि जिनं।।
ज्येष्ठ जिनेन्द्र न्हवाऊँ सूरज उग्र भणी।
सुवरण कलशा भराऊँ क्षीरसमुद्र भरणी।।१।।
जुगला धर्म निवारण स्वामी ऋषभ जिनम्।
संसार सागर तारण सेविय सुर गहनं।।
ज्येष्ठ जिनेन्द्र न्हवाऊँ सूरज उग्र भणी।
सुवरण कलशा भराऊँ क्षीरसमुद्र भरणी।।२।।
इन्द्र इन्द्रानी देवा देवी बहु मिलनी।
मेरु जिनेन्द्र न्हवायो महोत्सव जै करनी।।
ज्येष्ठ जिनेन्द्र न्हवाऊँ सूरज उग्र भणी।
सुवरण कलशा भराऊँ क्षीरसमुद्र भरणी।।३।।
गणधर, ऋषिवर, यतिवर, मुनिवर ध्यान धरं।
आर्यिका, श्रावक, श्राविका, पूजत चरण वरं।।
ज्येष्ठ जिनेन्द्र न्हवाऊँ सूरज उग्र भणी।
सुवरण कलशा भराऊँ क्षीरसमुद्र भरणी।।४।।
ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
निर्मल शीतल नीर उदक यह पूजरयं।
कर्म मलय सब टारी आतम निर्मलयं।।
ज्येष्ठ जिनेन्द्र न्हवाऊँ सूरज उग्र भणी।
सुवरण कलशा भराऊँ क्षीरसमुद्र भरणी।।५।।
ॐ ह्रीं आदिनाथजिनेन्द्राय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
केशरि चंदन कर्पूर विलेपन पूजरयं।
सुगंध शरीर लहे करि आतम निर्मलयं।।
ज्येष्ठ जिनेन्द्र न्हवाऊँ सूरज उग्र भणी।
सुवरण कलशा भराऊँ क्षीरसमुद्र भरणी।।६।।
ॐ ह्रीं आदिनाथजिनेन्द्राय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
मुक्ताफल सम उज्ज्वल अक्षत पूजरयं।
अक्षय पद सु लहै करि आतम निर्मलयम्।।
ज्येष्ठ जिनेन्द्र न्हवाऊँ सूरज उग्र भणी।
सुवरण कलशा भराऊँ क्षीरसमुद्र भरणी।।७।।
ॐ ह्रीं आदिनाथजिनेन्द्राय अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
जाही जुही मच कुन्द सेवती पूजरयं।
पूजा पद सु लहे करि आतम निर्मलयम्।।
ज्येष्ठ जिनेन्द्र न्हवाऊँ सूरज उग्र भणी।
सुवरण कलशा भराऊँ क्षीरसमुद्र भरणी।।८।।
ॐ ह्रीं आदिनाथजिनेन्द्राय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
उत्तम अन्न बहु आनि सु पक्वान्न पूजरयं।
वेदनीय कर्म विनाशी आतम निर्मलयं।।
ज्येष्ठ जिनेन्द्र न्हवाऊँ सूरज उग्र भणी।
सुवरण कलशा भराऊँ क्षीरसमुद्र भरणी।।९।।
ॐ ह्रीं आदिनाथजिनेन्द्राय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
कर्पूर तनी बहु ज्योति सु आरति पूजरयं।
केवलज्ञान लहे करि आतम निर्मलयम्।।
ज्येष्ठ जिनेन्द्र न्हवाऊँ सूरज उग्र भणी।
सुवरण कलशा भराऊँ क्षीरसमुद्र भरणी।।१०।।
ॐ ह्रीं आदिनाथजिनेन्द्राय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
अगर लोबान कृष्णागर धूप सो पूजरयं।
घाती कर्म प्रजाली आतम निर्मलयम्।।
ज्येष्ठ जिनेन्द्र न्हवाऊँ सूरज उग्र भणी।
सुवरण कलशा भराऊँ क्षीरसमुद्र भरणी।।११।।
ॐ ह्रीं आदिनाथजिनेन्द्राय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
आम्र नीबू जंभीर नारियल पूजरयम्।
मन वांछित फल पायमि आतम निर्मलयम्।।
ज्येष्ठ जिनेन्द्र न्हवाऊँ सूरज उग्र भणी।
सुवरण कलशा भराऊँ क्षीरसमुद्र भरणी।।१२।।
ॐ ह्रीं आदिनाथजिनेन्द्राय फलं निर्वपामीति स्वाहा।
धवल मंगल गीत महोत्सव पूजरयम्।
मोक्ष सौख्य पद पायमि आतम निर्मलयम्।।
ज्येष्ठ जिनेन्द्र न्हवाऊँ सूरज उग्र भणी।
सुवरण कलशा भराऊँ क्षीरसमुद्र भरणी।।१३।।
ॐ ह्रीं आदिनाथजिनेन्द्राय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
सकलकीर्ति गुरु प्रणमों जिनवर पूजरयम्।
ब्रह्म मनै ‘जिनदास’ सु आतम निर्मलयम्।।
ज्येष्ठ जिनेन्द्र न्हवाऊँ सूरज उग्र भणी।
सुवरण कलशा भराऊँ क्षीरसमुद्र भरणी।।१४।।
ॐ ह्रीं आदिनाथजिनेन्द्राय पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला
दोहा
आदि प्रभो जिन आदि गुरु, आदि नमो अर्हंत।
आदि समय सुमिरण करौं, भय भंजन भगवंत।।१।।
छंद
अमर नयर सम नयर अयोध्या।
नाभि सुरेन्द्र बसै जु सु बुध्या।।
सुरपति मेरु शिखर लै धरिया।
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया।।१।।
तसु पटरानी मरुदेवी माया।
युगपति आदि जिनेश्वर जाया।।
सुरपति मेरु शिखर लै धरिया।
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया।।२।।
ज्येष्ठ मास अभिषेक सु करिया।
अष्ठोत्तर शत कुम्भ सु भरिया।।
सुरपति मेरु शिखर लै धरिया।
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया।।३।।
भभकत जल धारा संचरिया।
ललित कल्लोल धरनि उत्तरिया।।
सुरपति मेरु शिखर लै धरिया।
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया।।४।।
जै जै कार असुर उच्चरिया।
इन्द्र इन्द्राणी सिंहासन धरिया।।
सुरपति मेरु शिखर लै धरिया।
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया।।५।।
अंग अंग नव भूषण हरिया।
कुण्डल हार हरित मणि जरिया।।
सुरपति मेरु शिखर लै धरिया।
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया।।६।।
वृषभ नाथ सत नाथ सु सहिया।
कमल नयन कमलापति कहिया।।
सुरपति मेरु शिखर लै धरिया।
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया।।७।।
जुगला धर्म निवारण वरिया।
सुर नर किन्नर गंधोदक सरिया।।
सुरपति मेरु शिखर लै धरिया।
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया।।८।।
हिम हिमांसु चन्दन घन सरिया।
भूरि सुगंध गंध परि सरिया।।
सुरपति मेरु शिखर लै धरिया।
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया।।९।।
रतन कचोल कुमारनि भरिया।
जिन चरणांबुज पूजत हरिया।।
सुरपति मेरु शिखर लै धरिया।
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया।।१०।।
अक्षत अक्षत वास लहरिया।
रोहिनी कंत किरन सम सरिया।।
सुरपति मेरु शिखर लै धरिया।
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया।।११।।
देखत रुचिकर अमर निकरिया।
पंच मुष्ठि आगे जिन धरिया।।
सुरपति मेरु शिखर लै धरिया।
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया।।१२।।
सुन्दर पारिजात मोगरिया।
कमल वकुल पाटल कुमुदरिया।।
सुरपति मेरु शिखर लै धरिया।
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया।।१३।।
चरु वर दीप धूप फल फलिया।
फल सु रसाल मधुर रस भरिया।।
सुरपति मेरु शिखर लै धरिया।
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया।।१४।।
कुसुमांजलि सांजलि समु जलिया।
पंडित राज आम्र बच कलिया।।
सुरपति मेरु शिखर लै धरिया।
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया।।१५।।
त्रिभुवन कीर्ति पद पंकज वरिया।
रत्नभूषण सूरि महापद करिया।।
सुरपति मेरु शिखर लै धरिया।
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया।।१६।।
जै जै कार असुर उच्चरिया।
ब्रह्म कृष्ण जिनराजस्तविया।।
सुरपति मेरु शिखर लै धरिया।
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया।।१७।।
कुम्भकलश भर जो जन ढरिया।
शाश्वत धर्म सदा अनुसरिया।।
सुरपति मेरु शिखर लै धरिया।
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया।।१८।।
अनुष्टुप्
यावंति जिनचैत्यानि, विद्यंते भुवनत्रये।
तावंति सततं भक्त्या, त्रि:परीत्य नमाम्यहं।।
ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा।
।।इत्याशीर्वाद:।।
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