विभिन्न धर्मों में अपने महापुरुषों के नाम से संवत् चलाने की परम्परा रही है। जैनधर्म में भी भगवान महावीर की निर्वाणतिथि के आधार पर वीर निर्वाण संवत् का प्रचलन है। यह हिजरी, विक्रम, ईसवी, शक आदि संवतों से अधिक पुराना है एवं जैनधर्म की प्राचीनता व अपने स्वतंत्र मान्यता का उद्घोषक है। इस बात का प्रमाण आमेर म्यूजिमय में रखे शिलालेख से भी मिलता है। इसके साथ ही भारतीय साहित्य के ग्रंथ भी इस तथ्य की पुष्टि करते हैं।
१.वीर निर्वाण संवत् — भगवान महावीर के निर्वाण होने से अगले दिन ही कार्तिक सुदी १ से प्रारम्भ हुआ।
२.विक्रम संवत् — यह संवत् राजा विक्रम से सम्बन्घित है एवं महावीर निर्वाण के ४७० वर्ष बाद प्रारम्भ हुआ।
३.शक संवत् — यद्यपि यह संवत् आज प्रचलन में नहीं है किन्तु इतिहास बताता है कि यह कभी दक्षिण देश में प्रचलित था। यह संवत् भृत्यवंशी गौतमी पुत्र राजा सातकर्णी शालीवाहन ने शुरु किया था। जो कि भगवान महावीर के निर्वाण के ६०५ वर्ष पश्चात शुरु हुआ।
४.शालिवाहन संवत् — यह संवत् भी वर्तमान में प्रचलन में नहीं है जबकि दक्षिण देश में किसी समय प्रचलन में था। यह भगवान महावीर निर्वाण के ७४१ वर्ष पश्चात् प्रारम्भ हुआ।
५.ईस्वी संवत् — यह संवत् ईसामसीह के स्वर्गवास पश्चात् यूरोप में प्रचलित हुआ। यह अंग्रेजी साम्राज्य के मध्य सारी दुनिया में फैला और भगवान महावीर निर्वाण के ७२५ वर्ष के पश्चात् प्रारम्भ हुआ।
६.गुप्त संवत् — इस संवत् की स्थापना गुप्त साम्राज्य के प्रथम सम्राट चन्द्रगुप्त ने अपने राज्याभिषेक के समय की। भगवान महावीर निर्वाण के ८४६ वर्ष पश्चात् यह संवत् शुरु हुआ।
७.हिजरी संवत — यह संवत् पैगम्बर मोहम्मद साहब के मक्का से मदीना जाने के समय से उनकी हिजरत वीर निर्वाण के ११२० वर्ष पश्चात् स्थापित हुआ। इसी को मुहर्रम या शवान सन् भी कहते हैं।
८.मघा संवत् — यह संवत् भगवान् महावीर निर्वाण के १००३ वर्ष पश्चात् प्रारम्भ हुआ है। इस संवत्सर का प्रयोग कहीं भी देखने में नहीं आता। मात्र महापुराण ७६—३९९ से सिद्ध होता है।