यूनानी शासक सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण ३२७ ई. पू. में किया। वह भारत आकर कुछ राज्यों में विजय प्राप्त करके वापस लौट रहा था, तब उसने तक्षशिला के पास एक उद्यान में बहुत से नग्न जैन मुनियों को तपस्यारत देखा। उसने अपने एक दूत को भेजकर मुनिराजों को बुलवाना चाहा लेकिन मुनिराज नहीं आये। तब सिकन्दर स्वयं उस स्थान पर पहुँचा और दिगम्बर मुनिराजों के तप को देखकर बहुत प्रभावित हुआ। उनमें से एक कल्याण मुनि थे, जिनसे सिकन्दर ने यूनान में धर्म प्रचार करने की प्रार्थना की और उसके बहुत आग्रह से कल्याण मुनि उसके साथ गए। नग्न रहना, भूमि शोधन कर चलना, हरितकाय का विराधन न करना, किसी का निमन्त्रण स्वीकार न करना इत्यादि जिन नियमों का पालन मुनि कल्याण और उनके सभी मुनि गण करते थे, उनसे यूनानी बहुत प्रभावित थे। मुनि कल्याण ज्योतिष शास्त्र में निष्णात थे। उन्होंने बहुत—सी भविष्यवाणियाँ की थीं और सिकन्दर की मृत्यु को भी उन्होंने पहले से घोषित कर दिया था। इन दिगम्बर जैन श्रमणों की शिक्षा का यूनानियों पर विशेष प्रभाव पड़ा। यूनान के एंथेस शहर में कल्याण मुनि का समाधि स्थल बना है।