जैनधर्म सम्बन्धी प्राचीन शिलालेख सबसे ज्यादा मिलते हैं। उड़ीसा में महामेघ वाहन खारवेल का (ई. पू. दूसरी शताब्दी) शिलालेख बहुत महत्त्वपूर्ण है। उदयगिरि—खण्डगिरि में और प्राकृत लेख उपलब्ध हुए हैं। मथुरा के जैन लेखों के आधार पर ही डॉ. हर्मन जैकॉबी ने जैनागमों की प्राचीनता को मान्य किया है। गुप्तकाल के बाद के लेख प्रचुर हैं। श्रवणबेलगोला के लेख कन्नड़ लिपि में हैं। पश्चिम भारत में पाये जाने वाले लेख देवनागरी लिपि में है। मध्यकाल में यहाँ के राज्यों में जैनों को सम्मान प्राप्त था और जैनधर्म को राजा आदर की दृष्टि से देखते थे। जैसलमेर, कुहाऊँ, राजगृह, शत्रुंजय, रणकपुर, गिरनार, हटूण्डी, देवगढ़ आदि में मूल्यवान शिलालेख पाये गये हैं।