जैनाचार्यों ने एक बूंद अनछने जल में असंख्यात जीव बताये हैं। सुप्रसिद्ध विज्ञानवेत्ता वैप्टन स्ववोर्सवी ने सूक्ष्मदर्शी यंत्र की सहायता से एक बूँद जल में ३६,४५० त्रस जीव की गणना की है। अनछने जल के उपयोग से अधिक हिंसा होती है, जो घोर पाप का कारण है। उज्जयिनी नगरी के सेठ जिनदत्त की बहू के द्वारा जीवाणी गिरने पर प्रायश्चित्त के निवेदन पर मुनि महाराज ने ८४००० मुनिराजों को आहार अथवा निर्दोष ब्रह्मचर्य की साधना करने वाले गृहस्थ जोड़े को आहार कराने का प्रायश्चित्त दिया। (इतना बड़ा प्रायश्चित्त इस बात का प्रतीक है कि इतनी बड़ी हिंसा होती है) अहिंसा धर्म का पालन करके आप अपनी आत्मा को पवित्र कर सकते हैं। मेरु पर्वत के बराबर स्वर्ण दान से अधिक पुण्य संचय का कारण एक जीव की रक्षा में है। आज डॉक्टर स्वास्थ्य की दृष्टि से छने पानी के पीने के लिए जोर देते हैं, जबकि जैनदर्शन स्वास्थ्य के साथ जीवदया का भी पालन करने का निर्देश करता है। पानी पिओ छानकर, गुरु मानो जानकर।