हाल ही में हुये केदारनाथ में प्रकृति के महाकहर का मंजर २४ घंटे न्यूज चैनलों पर छा रहा है। इस आपदा में हुये नुकसान व हजारों लोगों की मृत्यु पर खेद प्रकट करता हूँ। और भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि उन्हें सद्गति प्राप्त हो और उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करने के साथ उनके परिवार को आत्म संबल प्रदान करें। लेकिन मैं आज केन्द्र सरकार के साथ—साथ प्रत्येक राज्य के सरकार को अवगत कराना चाहता हूँ कि प्रकृति के साथ खिलवाड़ व हिंसा का तांडव बंद नहीं किया गया तो आगे भी प्रकृति का कहर हमें कुछ पल के लिये देखने को मिलेगा और फिर हम खुद देखने लायक नहीं बचेंगे। प्रत्येक राज्य में कई भूचड़खाने चल रहे हैं और नये—नये भूचड़खानों को दिन—प्रतिदिन जन्म दिया जा रहा है। जिनमें प्रतिदिन हजारों लाखों मूक पशुओं (गाय, बकरी, भैंस आदि) के प्राणों का घात किया जा रहा है। उनके उपयोग मांस, चर्बी व हड्डी को एकत्रित कर वाकी के अवशेष नदियों में बहा दिये जाते हैं या जंगलों में पेंâक दिये जाते हैं। माँ गंगा, माँ जमुना, माँ सरस्वती, माँ नर्मदा द्वारा ऐसा क्या हमारे अहित में किया गया जो गंदगी हम उनकी झोली में डाल देते हैं। धर्म के नाम पर कई मुर्दो को वहाँ दिया जाता है। क्या कभी उन्हें स्वच्छ साफ रहने का अधिकार नहीं है ? जब किसी ने उनकी सफाई के लिये कोई अभियान नहीं चलाया तो मजबूरन ही उन्हें अपना सफाई अभियान चलाना पड़ा। और जिसके आगे स्वयं भोले शंकर को झुकना पड़ा। सम्पूर्ण भारत वर्ष के उद्योगपतियों से देश की जनता से निवेदन है कि प्रकृति के साथ खिलावाड़ करना छोड़ दें, जंगलों को काटे नहीं बल्कि नये नये पेड़ पौधों को जन्म दें। व कुरुतियों को धर्म की परम्परा न बनायें जिसने हजारों साल से मनुष्य को जीवन दिया वो माँ आज जीवन छीनने पर उतारू है मतलब ये उसकी मजबूरी है। देश की जनता को, सरकार को हिंसा के खिलाफ, भू खनन, खनिज खनन आदि के प्रति सशक्त होकर कदम बढ़ायें, जंगलों को सुरक्षित जीवन प्रदान करने के लिये अभियान चलायें एवं जागरूक करें। माँ गंगा स्वयं शांत हो जायेगी और देश को अपने हृदय से लगा लेगी। जब जब माँ रोती है तब तबाही हुई है। आज माँ रोयी तो उसके आंसुओं हजारों लाखों लोग बह गये, काल के गाल में समा गये तब माँ को शांत करा लो उसे धैर्य बंधाओं उसे चुप कराओ वो माँ है वो मान जायेगी वो समझदार है माँ मान जायेगी, माँ मान जायेगी…………