”ईशान कोण शास्त्र अनुकूल हो, जन्नत के जैसा माहौल बना देता है”
ईशान कोण ईश्वर का कोण है। ईशान कोण शास्त्र अनुकूल हो, जन्नत के जैसा माहौल बना देता है। खुशियाँ देने में ईशान कोण समर्थ होता है। गतांक में आपने पढा था, दूषित ईशान कोण अर्श से फर्श पर ला सकता है ईशान देवताओं के गुरु वृहस्पति का स्थान है। गुरू शब्द ही अपने आप में महान है। जिसके जीवन में गुरू नहीं, उसका जीवन शुरू नहीं। अज्ञानता के अंधेरे से निकालना गुरु का धर्म है, गुरु का कर्म है, गुरु का कर्तव्य है। गुरु गोविन्द दोनों खड़े काके लागूं पाय, बलिहारी गुरुदेव की गोविन्द दियो बताए। आज के सांसारिक युग में कदम—कदम पर नई—नई जानकारियाँ खड़ी हैं। जानकारियाँ अच्छी, बुरी व्यावहारिक इत्यादि हो सकती हैं। गुरु ही हमें विश्व की सभी जानकारियों से ओत—प्रोत कर देते हैं। आत्मनिर्भर बना देते हैं। अंतरात्मा में प्रेम का सागर उड़ेल देते हैं। शास्त्रों के अनुसार भूखंड का ईशान कोण गुरु का पर्यायवाची शब्द है। शास्त्र अनुकूल बना हुआ ईशान कोण सकारात्मक ऊर्जाओं को घर में भर देता है। सकारात्मक ऊर्जा में असंभव को संभव बनाने की शक्ति है। जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि :— दृष्टि में अगर सकारात्मक भाव हो, तो भूखंड का चप्पा—चप्पा हमें जन्नत नजर आता है। जीवन में अगर सफल होना है, छोटी सोच वाले लोगों के चक्कर में न आए, न उनसे सलाह लें और ना ही संगत लें। जिस तरह छोटी सोच, ओछे विचार वाले मस्तिष्क को अस्वस्थ कर देते हैं, तो छोटी—छोटी बातों से ऊपर उठ जाइए। अपनी दृष्टि को अपने लक्ष्य पर लगाइये। लक्ष्य आपसे दूर नहीं रहेगा। आपने देखा होगा कि बारिश और धूप दोनों के मिलने से इंद्रधनुष बनता है। जीवन में खुशियाँ भी हैं, गम भी हैं। सुख भी है, दु:ख भी है। अंधेरा भी है, उजाला भी है। हम अपने कर्मों के अधीन पाते हैं। अगर हम अपनी हालत बदलना चाहते हैं, तो अपनी सोच के नजरिए बदलने होंगे। सोच के नजरिए ही सफलता पाने की कुंजी हैं। अपनी दृष्टि का विस्तार करें, सृष्टि के अंदर सफलता खोजें। असफल व्यक्ति दो तरह के होते हैं, एक तो वो जो करते हैं लेकिन सोचते नहीं। दूसरे वो सोचते रहते हैं मगर कुछ करते नहीं। कुम्हार अपने चाक पर मनचाहे बर्तनों को आकार दे देता है। बाजार हाट में कुम्हार की कारीगरी पसन्द की जाती है। हम अपनी जिन्दगी को अच्छे ढांचे में ढालने का प्रयास करेंगे। सफलता के शिखर पर पहुँचने से पहले सफलता क्या होती है, इसको अपनी सोच में अनुभव करना पड़ेगा। तभी सफलता कदम चूमेगी। हर एक में कुछ न कुछ कमी होती है। जैसा पात्र मिले, उसको स्वीकार कर लेना चाहिए। हमें हर जगह पूर्णता की इच्छा नहीं करनी चाहिए। अपनी उलझनों को सुलझाने का प्रयास करना चाहिए। जिस काम से डर लगता हो, उस काम को जरूर करें। काम करने से मन का डर निकल जाएगा। अच्छे समय का इंतजार करके समय बर्बाद न करें। काम में जुट जाइए, समय अपने आप अनुकूल हो जाएगा। विचार मजबूत रखें। विचारों से सफलता नहीं मिलती, सफलता विचारों के द्वारा प्रदान किए गए मार्ग पर चलने से मिलती है। लक्ष्य, सच्ची लगन, कठोर परिश्रम करने वाला असंभव शब्द पसन्द नहीं करता। अगर आप अपनी हालत बदलने के लिए कमर कसकर तैयार हैं, तो परमात्मा आपके साथ है। खुदा ने उस कौम की हालत न बदली, जिसे न फिक्र हो अपनी हालत बदलने की। जीवन में जब भी कभी असफलता मिले, न उससे घबड़ाएं, न असफलता का कारण किसी दूसरे को बनाएं। कार्य के बारे में पूरी जानकारी न होना, काम की पूरी तैयारी नहीं करना इत्यादि कारणों के अलावा कार्य करने में उत्साह एवं लगन की कमी भी हार का मुख्य कारण हो सकती है। अपने दिमाग को ठंडा रखने की आदत डालें। प्रतिकूल परिस्थितियों में घबड़ाना या उत्तेजित होकर अपने आप को परेशान न होने दें। असफलता जिस कारण से मिली, उसकी तलाश करें, समाधान करें। अपने मार्ग पर आगे बढ़ जायें। हार से कभी भी अपने मन में मानसिक व्यथा पैदा न करें। एक विद्वान ने कहा है कि निराशा एक प्रकार की कायरता है, जो आदमी को कमजोर बनाती है। अपनी गलतियों का आत्ममंथन करें एवं फिर प्रयास में जुट जाएं। सकारात्मक सोच को चेतन रूपी मन पर बैठा दिया जाए, जो एक कुशल नाविक की तरह आपकी नौका पार लगा सकता है। आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। आपके अंदर अद्भुत शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्तियाँ भरी हुई हैं। आप अपनी सकारात्मक सोच से उनका विकास कर सकते हैं” अंतरात्मा के विश्वास से, अपने कार्यो से संसार को चकित कर सकते हैं। सफल व्यक्ति कभी भी तर्क नहीं करते। लड़ाई—झगड़ा पसन्द नहीं करते। बहस करके अपना समय बर्बाद नहीं करते। अपने सोच का दायरा विशाल बना लेते हैं। अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने का प्रयास करते हैं, तो निश्चित रूप से सफल हो जाते हैं। विजय के मुकुट से माथा शोभित हो जाएगा।