भारतदेश की वसुन्धरा पर शाश्वत तीर्थ अयोध्या और सम्मेदशिखर के समान ही कर्मयुग की आदि से प्रयाग तीर्थ का प्राचीन इतिहास रहा है। आज से करोड़ों वर्ष पूर्व जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने अयोध्या में जन्म लेकर राज्य संचालन किया पुनः संसार से वैराग्य हो जाने पर उन्होंने जिस सिद्धार्थ नामक वन में जाकर वटवृक्ष के नीचे जैनेश्वरी दीक्षा धारण की थी, वही स्थान प्रयाग के नाम से प्रसिद्धि को प्राप्त हुआ, ऐसा जैन ग्रंथों में वर्णन आता है। जैसा कि हरिवंशपुराण में कहा है-
एवमुक्त्वा प्रजा यत्र, प्रजापतिमपूजयत्।
प्रदेशः स प्रयागाख्यो, यतः पूजार्थयोगतः।।
अर्थात् जहाँ दीक्षा के समय भगवान से सान्त्वना को प्राप्त करके प्रजा ने और सुर-असुरों ने भी भगवान की विशेष पूजा की, उसी पूजा के निमित्त से उस स्थल का ‘‘प्रयाग’’ यह नाम प्रसिद्ध हुआ। जैन रामायण पद्मपुराण में भी आया है-
‘‘प्रकृष्टो वा कृतस्त्यागः प्रयागस्तेन कीर्ति’’
अर्थात् प्र-उत्कृष्ट रूप से त्याग करने से उस स्थल का नाम ‘‘प्रयाग’’ पड़ गया। इस कथन के अनुसार करोड़ों वर्ष पूर्व उस प्रयाग तीर्थ पर जिस वटवृक्ष के नीचे भगवान ने दीक्षा धारण की थी, पुनः एक हजार वर्ष तक तपश्चरण करके उसी वटवृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त किया था। आज भी वह ‘‘अक्षय वटवृक्ष’’ के नाम से प्रयाग में विद्यमान है। वर्तमान में वह प्रयाग नगर ‘‘इलाहाबाद’’ के नाम से उत्तर प्रदेश मे ‘‘महाकुंभ नगरी’’ के रूप में विश्वप्रसिद्ध तीर्थ है। इतिहास पुनः साकार हुआ-
प्रयाग का जो प्राचीन जैन इतिहास लुप्तप्राय हो गया था, युगादि का वही प्राचीन नगर प्रयाग जैनतीर्थ के रूप में पुनः नई सहस्राब्दि का वरदान बनकर अपने इतिहास से संसार को परिचित करा रहा है। जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी पूज्य गणिनी प्रमुख आर्यिका शिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा प्राप्त कर दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान, जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर (मेरठ-उत्तरप्रदेश) नामक संस्था के द्वारा फरवरी 2001 में इलाहाबाद-बनारस हाइवे पर ‘‘तीर्थंकर ऋषभदेव तपस्थली तीर्थ’’ का अभूतपूर्व निर्माण हुआ है। उक्त संस्थान के द्वारा 4 फरवरी सन् 2000 को राजधानी दिल्ली मे ‘‘भगवान ऋषभदेव अंतर्राष्ट्रीय निर्वाण महामहोत्सव’’ का प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी से उद्घाटन कराया गया था। उसी महोत्सव वर्ष का समापन 8 फरवरी 2001 को इस तपस्थली तीर्थ के निर्माणपूर्वक किया गया। फलस्वरूप फरवरी 2001 में तीर्थ की प्रणेत्री पूज्य गणिनी माताजी के ससंघ सानिध्य एवं अनेक राजनेताओं, समाजनेताओं की गरिमामयी उपस्थिति में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा तथा भगवान ऋषभदेव का महाकुंभ मस्तकाभिषेक महोत्सव सम्पन्न हुआ। तब से तपस्थली तीर्थ पर निरन्तर साधु संघों एवं श्रद्धालु भक्तों के आवागमन का तांता लगा रहता है।
तीर्थ पर निर्मित वन्दनीय स्थलों की जानकारी
तीर्थ परिसर के इस प्रथम मंदिर में धातु से निर्मित 15 फुट ऊँचे वटवृक्ष के नीचे भगवान ऋषभदेव की मुनि अवस्था की सवा पाँच फुट उत्तुंग खड्गासन (पिच्छी-कमंडलु सहित) प्रतिमा कर्मयुग की प्रथम दीक्षा का इतिहास दर्शा रही है। सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्रस्वरूप रत्नत्रय त्रिवेणी की स्मृति में ही मानो प्रयाग में गंगा, यमुना ओैर सरस्वती नदियों का संगम पाया जाता है। इस तपोवन के सामने अनेक भक्तगण अपने बच्चों का मुंडन संस्कार करवाकर उनमें विद्याबुद्धि एवं सदाचार के संस्कार आरोपित करते हैं। यह तपोवन सभी दर्शनार्थियों के हृदय में तप-त्याग की भावना उत्पन्न करे यही मंगल भावना है।
जिस पुरिमतालपुर के उद्यान में भगवान ऋषभदेव को केवलज्ञान हुआ था उसे प्रयाग का ही पूर्वतालपुर माना जाता है। उसी इतिहास को दर्शाने के लिए तपोवन के समान ही दूसरी तरफ कमलाकार मंदिर में समवसरण की रचना निर्मित है। इस समवसरण रचना का भी ऐतिहासिक महत्व निम्न प्रकार है- मार्च 1998 में पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से उनके संघ सानिध्य में राजधानी दिल्ली के लालकिला मैदान से तत्कालीन केन्द्रीय वित्त राज्यमंत्री श्री वी. धनंजय कुमार जैन की अध्यक्षता में उद्घाटित तथा प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा प्रवर्तित ‘‘भगवान ऋषभदेव समवसरण श्री विहार रथ’’ एवं विशाल ‘‘ऐरावत हाथी’’ रथ का संस्थान द्वारा देश के विभिन्न अंचलों में प्रभावनापूर्ण प्रवर्तन लगभग 3 वर्ष तक हुआ। उस प्रवर्तन से प्राप्त दिगम्बर जैन श्रद्धालुओं की धनराशि का सदुपयोग संस्थान ने इस दीक्षा तीर्थ के निर्माण में किया तथा उसी ऐतिहासिक समवसरण की स्थाई रूप से स्थापना इस तीर्थ पर की गयी है। धातु से निर्मित इस लघुकाय समवसरण को पूर्णरूप से शास्त्रोक्त विधि अनुसार दर्शाया गया है। भगवान के दिव्यज्ञान का प्रतीक यह समवसरण सभी के हृदय में ज्ञान की ज्योति प्रस्फुरित करे यही शुभेच्छा है।
तपस्थली परिसर के बीचोंबीच में विशाल कैलाश पर्वत का निर्माण हुआ है। जैनशास्त्रों के अनुसार कैलाशपर्वत पर भगवान ऋषभदेव ने अंत में तपस्या करके समस्त कर्मा से रहित मोक्ष अवस्था प्राप्त की थी। वर्तमान में वह कैलाश-मानसरोवर के नाम से चीन देश की सीमा में है। अतः भारत में उसकी प्रतिकृति का दिग्दर्शन कराने हेतु प्रथम बार इस पर्वत का निर्माण प्रयाग में किया गया है, जो उत्तर प्रदेश के पर्यटन स्थलों में से एक आकर्षक स्थल है।
पर्वत पर सामने से ही त्रिकाल चैबीसी के 72 जिनमंदिरों एवं भगवन्तों के दर्शन से जहाँ जैन श्रद्धालु सम्राट् भरत चक्रवर्ती द्वारा निर्मित 72 मंदिरों के पौराणिक इतिहास को स्मरण करने लगते हैं, वहीं समस्त संप्रदाय के बन्धु पर्वत से निकलते झरने, झील एवं पशु-पक्षियों के प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर अति हर्षित होते हैं। 108 फुट लम्बे, 72 फुट चैड़े और 50 फुट ऊँचे कैलाश पर्वत के शिखर पर 14 फुट उत्तुंग लालवर्णी भगवान ऋषभदेव की पद्मासन प्रतिमा के दर्शन से भक्तगण मनवा फल की प्राप्ति करते हैं।
कैलाशपर्वत के नीचे 50 फुट का गोलाकार गुफा मंदिर है, जिसमें सवा तीन फुट की पद्मासन धातु निर्मित भगवान ऋषभदेव की अतिशयकारी प्रतिमा विराजमान है। भक्तों के लिए पूजा-अर्चना एवं ध्यान-साधना का यह पावन स्थल सदैव भगवान के नामोच्चारण से गुंजायमान रहता है।
कैलाशपर्वत के ईशान कोण एवं समवसरण रचना के ठीक सामने 31 फुट ऊँचा ठोस पत्थर से निर्मित कीर्तिस्तम्भ अपने आप में एक अनूठी कृति है। उसमें सबसे ऊपर के चार चैत्यालयों में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की सवाफुट पद्मासन चार प्रतिमाएं विराजमान है तथा उसके नीचे चार मंदिरों में अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर की 1 फुट पद्मासन चार प्रतिमाएं है । इस कलात्मक कीर्तिस्तम्भ में ऋषभदेव जी का चित्रमय चरित्र, उनके परिचय के शिलालेख एवं जैनधर्म के मूल सिद्धान्तों का उल्लेख है। इसी प्रकार से कैलाशपर्वत के दूसरी ओर तपोवन के सामने 21 फुट ऊँचा अखण्ड धर्मध्वज है, जिसमें स्वस्तिक चिन्ह से समन्वित केशरिया ध्वज सदैव अहिंसा धर्म एवं विश्वशांति की कीर्तिपताका को फहरा रहा है।
तपस्थली तीर्थ निर्माण के साथ-साथ परिसर में ‘‘गणिनी ज्ञानमती निलय’’ के नाम से आधुनिक सुविधायुक्त 26 डीलक्स फ्लैट की दो मंजिला सुंदर धर्मशाला तथा ‘‘प्रथमाचार्य श्री शांतिसागर निलय’’ के नाम से 12 फ्लैट की सुन्दर बिल्डिंग बनी हुई है। पानी की सुविधा हेतु क्षेत्र पर बड़ी टंकी का निर्माण हो चुका है। शुद्ध जल के लिए कुआं एवं जेटपम्प की व्यवस्था है तथा आगन्तुक यात्रियों के शुद्ध भोजन एवं नाश्ते के लिए भोजनालय व कैन्टीन की समुचित व्यवस्था है। सरकारी बिजली के साथ-साथ तीर्थ पर जनरेटर भी उपलब्ध है, जिससे बिजली-पानी की सुविधा के साथ फौव्वारे, झरने एवं विद्युत प्रकाश आदि के दृश्य प्रतिदिन दर्शनार्थियों के लिए सुलभ रहते हैं।
इस मनोरम तीर्थ पर सुन्दर झूले, मिनी ट्रेन तथा जिनमंदिरों की परिक्रमा के लिए ऐरावत हाथी की व्यवस्था है। यहाँ सुन्दर हरे-भरे लॉन तथा फुलवाड़ी आने वाले प्रत्येक दर्शक के मन को आल्हादित करते रहते हैं।
भगवान महावीर के 2600वें जन्मकल्याणक के शुभ अवसर पर सन् 2002 में यहाँ पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के ससंघ चातुर्मास में विशाल हाल का निर्माण किया गया। इसमें दीक्षा भूमि पर होने वाले कार्यक्रम समय-समय पर सम्पन्न होते रहते हैं। इस प्रकार अतिप्राचीन प्रयाग तीर्थ में नई रौनक के साथ बनारस हाइवे पर निर्मित उत्तरमुखी तीर्थंकर ऋषभदेव तपस्थली तीर्थ देशभर के यात्रियों के आकर्षण का केन्द्र है। तीर्थ के एक ओर रेलवे लाइन पर चलती रेलगाड़ियां और दूसरी ओर (उत्तर में) जी.टी.रोड पर चलती कारों, बसों एवं ट्रकों में बैठे यात्री भी अनायास ही दूर से दिख रहे भगवान ऋषभदेव का दर्शन करके पुण्य प्राप्त करते हैं। अनेक ऐतिहासिक धरोहरों से समन्वित यह ऋषभदेव दीक्षा तीर्थ युगों-युगों तक जन-जन के कल्याण का माध्यम बने यही मंगलकामना है।