अनेक अर्थात् बहुत, अंत यानि धर्म, वस्तु अनेक धर्मों से सहित है, यही अनेकान्त है। जैसे एक व्यक्ति पिता की अपेक्षा से बेटा है, पत्नि की अपेक्षा से पति, बच्चे की
अपेक्षा पिता तथा बहिन की अपेक्षा से भाई भी है। अनेक धर्मात्मक वस्तु को किसी एक दृष्टि की मुख्यता से कथंचित्/स्यात् शब्द के साथ कहना स्याद्वाद है। जैसे वह पुरुष कथंचित् पिता है तो कथंचित् भाई भी।
स्यात् का अर्थ शायद नहीं, कथंचित् पूर्ण सत्य ज्ञान है।
अनेकांत प्रतीक है भी का, एकान्त प्रतीक है ही का।
अनेकान्त का आश्रय लेने से सदाचार, सद्विचार उत्पन्न होते हैं। स्वच्छन्दता, अहंकारिता मिटती है एवं मानसिक संघर्ष दूर होता है। स्वतंत्रता का सपना अनेकान्त के द्वारा ही साकार हो सकता है।
प्रस्तुत चित्र में ऐकान्तिक आग्रह से ऊपर उठकर अनेकान्तिक आकाश की ओर बढ़ने की प्रेरणा दी गई है।