प्रश्न – ब्राम्ही-सुन्दरी ने दीक्षा क्यों ली ?
उत्तर – वैराग्य भावना से दीक्षा ली है। तीर्थंकरों के कन्या होना काल दोष या अभिशाप नहीं है। चक्रवर्ती के भी कन्याएँ होती हैं। विदेह क्षेत्र के त्रिभुवनानंद चक्रवर्ती की कन्या अनंगशरा थी, जो तीन हजार वर्ष तक निर्जन वन में घोर तपश्चरण करके उसके प्रभाव से स्वर्ग में देवी होकर पुन: विशल्या हुई थी, जिसके आने मात्र से लक्ष्मण की शक्ति-अमोघशक्ति निकल गई थी। ‘श्रीमती’ राजा वज्रजंघ की पत्नी भी चक्रवर्ती की कन्या थी…। ये चक्रवर्ती केवल माता-पिता के सिवाय अपने सास-श्वसुर को भी नमस्कार नहीं करते हैं तभी छहखंड के स्वामी होते हैं। अर्धचक्री नारायण भी अपने सास-श्वसुर को नमस्कार नहीं करते हैं। चक्रवर्ती के ९६ हजार एवं अर्धचक्री के १६ हजार, बलभद्र के ८ हजार रानियाँ होती हैं। ये शलाका पुरुष भी अपने माता-पिता के सिवाय या बड़े भ्राता के सिवाय किसी को नमस्कार नहीं करते हैं। दामाद को नमस्कार की परम्परा अधिकतम किसी प्रांत में भी नहीं है। आज भी दामाद अपने सास-श्वसुर के पैर छूते हैं, नमस्कार करते हैं, न कि सास-श्वसुर उन दामाद के। यह किंवदन्ती ‘‘ब्राह्मी-सुन्दरी’’ के बारे में कि भगवान को उनके पति को नमस्कार करना पड़ता, इसलिए दोनों कन्याओं ने विवाह नहीं किया। गलत है। यह किसी भी दिगम्बर जैन ग्रंथों में नहीं लिखी है। भगवान शांतिनाथ, कुंथुनाथ व अरनाथ चक्रवर्ती थे, इनके ९६ हजार रानियों में किसी के कन्याएँ न हुईं हों, ऐसा असंभव है।