प्रश्न – क्या तीर्थंकर जन्म से ही भगवान नहीं होते हैं, प्रत्युत केवलज्ञान प्राप्त करने के बाद भगवान होते हैं ?
उत्तर – ऐसा नहीं है, उनके गर्भ में आने के छह माह पूर्व से रत्नवृष्टि आदि होना, ऐसी विशेषताएँ पाई जाती हैं अत: वे जन्म से ही भगवान कहे जाते हैं। महापुराण में श्री आचार्यदेव ने स्थल-स्थल पर उन्हें जन्म से ही मेरू पर अभिषेक के समय व राज्यावस्था में भी भगवान कहा है। देखें महापुराण भाग-१ में, जगह-जगह ‘भगवान’ शब्द का प्रयोग श्री आचार्य जिनसेन स्वामी ने किया है। आजकल कुछ प्रतिष्ठाचार्य या साधुवर्ग भी प्रतिष्ठाओं में जन्म से आदिकुमार, पाश्र्वकुमार आदि कहने लगे हैं। व दीक्षा के बाद आदिसागर या पाश्र्वसागर, शांतिसागर ऐसे नामकरण करने लगे हैं, सो सर्वथा अनुचित है। क्योंकि इन्द्र द्वारा रखे गये ‘आदिनाथ’, ‘शांतिनाथ’ आदि नाम नहीं बदलने चाहिए। दीक्षा के बाद भी श्री शांतिनाथ महामुनि आदि कहना चाहिए ‘नाथ’ या ‘देव’ शब्द नहीं हटाना चाहिए, क्योंकि वे जन्म से ही तीनों लोकों के ‘नाथ’ हैं। इन्द्रों द्वारा वंद्य हैं।