व्यक्ति के जीवन में पानी का विशेष महत्त्व है। तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो पानी को भोजन से कम नहीं आँका जा सकता है, ज्यादा ही है। कहते हैं कि ‘जल ही अमृत है’’, मैं तो कहता हूँ कि जल औषधि भी है। अधिकतर देखा जाता है कि व्यक्ति शरीर की आवश्यकतानुसार भोजन तो कर लेता है परन्तु पानी की आवश्यकता को नजरअंदाज कर देता है अतएव शरीर को पानी की पर्याप्त पूर्ति नहीं होती है। परिणामत: भोजन व पानी / जल पूर्ति का असंतुलन रहता है। इस असंतुलन के कारण व्यक्ति में चुस्ती, फुर्ती व गतिशीलता की कमी हो जाती है। कभी कभी थकान भी महसूस होती है। व्यक्ति को औसतन ४—५ लीटर पानी प्रतिदिन सेवन करना चाहिए। विशेषकर ग्रीष्म ऋतु में पानी की आवश्यकता बढ़ते तापमान के अनुसार और भी अधिक हो जाती है क्योंकि शरीर से पसीने के रूप में पानी निरंतर बाहर निकलता है। गर्मी के मौसम में घर से निकलने के पूर्व प्रचुर मात्रा में पानी पीकर ही निकलें। अपर्याप्त पानी के कारण व्यक्ति अस्वस्थ महसूस करने लगता है। शरीर में पानी की कमी के कारण कई बीमारियाँ जैसे डीहाइड्रेशन, पेशाब में जलन, कब्जियत, स्टोन बनना, बी. पी. शुगर का स्तर बढ़ना आदि हो जाती हैंं। शरीर के प्रत्येक अंग (Organ) के लिये पानी औषधि है। विशेषकर किडनी, लीवर, पेन्क्रियाज व मधुमेह (शुगर) की समस्या को रोकना/नियंत्रण करने हेतु प्रचुर मात्रा में प्रतिदिन पानी पीना आवश्यक है। डॉक्टर व वैद्य भी मरीज को कई बीमारियों में खूब पानी पीने को कहते हैं। प्रात: शौच के पूर्व ३—४ ग्लास या लगभग १ लीटर पानी जरूर पियें। कभी कब्जियत नहीं होगी एवं पेट संबंधी बीमारियों से बचेंगे। भोजन के पूर्व पानी आवश्यकतानुसार पियें परन्तु भोजन के दौरान एवं तुरंत बाद में न पियें। कम से कम आधा घण्टे का अंतराल जरूर होना चाहिए। प्रचुर मात्रा में पानी पीने से शरीर से दूषित पदार्थ, रसायन पेशाब के द्वारा बाहर निकल जाते हैं। भोजन की मात्रा कम एवं पानी की मात्रा बढ़ाने से वजन भी कम होता है यानि मोटापा शनै:—शनै: कम होता है। निष्कर्ष में यह कहा जा सकता है कि जल अमृत ही नहीं, वरन् औषधि भी है अत: पानी पियो, स्वस्थ रहो।