तत्त्वार्थसूत्र ( मोक्षशास्त्र )
(आचार्य श्री उमास्वामि-विरचित)!
अध्याय – १
मोक्षमार्गस्य नेतारं, भेत्तारं कर्मभूभृताम्। ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां, वन्दे तद्गुणलब्धये।।
सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्ग:।।१।।
तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्।।२।।
तन्निसर्गादधिगमाद्वा।।३।।
जीवाजीवास्रवबंधसंवर-निर्जरा-मोक्षास्तत्त्वम्।।४।।
नाम-स्थापना-द्रव्य-भाव-तस्तन्न्यास:।।५।।
प्रमाण-नयैरधिगम:।।६।।
निर्देश-स्वामित्व-साधनाधिकरण-स्थितिविधानत:।।७।।
सत्संख्या-क्षेत्र-स्पर्शनकालान्तर-भावाल्पबहुत्वैश्च।।८।।
मति-श्रुतावधि-मन:पर्ययकेवलानि ज्ञानम्।।९।।
तत्प्रमाणे।।१०।।
आद्ये परोक्षम्।।११।।
प्रत्यक्षमन्यत्।।१२।।
मति: स्मृति: संज्ञा चिन्ताभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम्।।१३।।
तदिन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तम्।।१४।।
अवग्रहेहावाय-धारणा:।।१५।।
बहु-बहुविध-क्षिप्रानि:सृतानुक्त-ध्रुवाणां सेतराणाम्।।१६।।
अर्थस्य।।१७।।
व्यञ्जनस्यावग्रह:।।१८।।
न चक्षुर-निन्द्रियाभ्याम्।।१९।।
श्रुतं मति-पूर्वं द्वयनेक-द्वादशभेदम्।।२०।।
भवप्रत्ययोऽवधिर्देव-नारकाणाम्।।२१।।
क्षयोपशमनिमित्त: षड्विकल्प: शेषाणाम्।।२२।।
ऋजु-विपुलमती मन:पर्यय:।।२३।।
विशुद्ध्यप्रतिपाताभ्यां तद्विशेष:।।२४।।
विशुद्धि-क्षेत्र-स्वामि-विषयेभ्योऽवधि-मन:पर्यययो:।।२५।।
मतिश्रुतयोर्निबन्धो द्रव्येष्वसर्व-पर्यायेषु।।२६।।
रूपिष्ववधे:।।२७।।
तदनन्त-भागे मन: पर्ययस्य।।२८।।
सर्व-द्रव्य-पर्यायेषु केवलस्य।।२९।।
एकादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्ना चतुर्भ्य:।।३०।।
मति-श्रुतावधयो विपर्ययश्च।।३१।।
सदसतोरविशेषाद्यदृच्छोपलब्धेरुन्मत्तवत्।।३२।।
नैगम-संग्रह-व्यवहारर्जु-सूत्र-शब्द-समभिरूढैवंभूता-नया:।।३३।।
इति तत्त्वार्थाधिगमे-मोक्षशास्त्रे प्रथमोध्याय:।।१।।