
श्री संभव जिन के जन्मकल्याणक, से पावन श्रावस्ती है। 
कंचन झारी में नीर, लेकर धार करूँ।


मोती सम उज्वल धौत, तंदुल लाया मैं।
ले भाँति भाँति के फूल, माला गूंथ लिया। 
नैवेद्य थाल भर लाय, निकट चढ़ाऊँ मैं। 




अंगूर सेव बादाम, फल को लाऊँ मैं।





जय जय तीर्थंकर संभवप्रभु की, जन्मभूमि मंगलकारी। 