
अष्टम तीर्थंकर चन्द्रप्रभू की, जन्मभूमि है चन्द्रपुरी। 
जग में कुछ सुख है कुछ दुख है, मैंने तो अब तक यह जाना।
चंदन अरु चंद्रकिरण मोती, गंगाजल यद्यपि शीतल हैं।
छहखंडाधिप चक्री का भी, नहिं पद अक्षय रह पाया है। 
यूँ तो पञ्चेन्द्रिय विषयों का, तीर्थंकर भी उपभोग करें।
हो कल्पवृक्ष का भोजन चाहे, शाश्वत तृप्ति न देता है। 




तन की संपुष्टी हेतु न जाने, कितने फल खाए जाते। 


चन्द्रप्रभ जी के चार कल्याणक, से पवित्र जो नगरी है। 

