अपने शासन के २००—२५० वर्ष पूर्व वहाँ की प्रसिद्ध आदिनाथ भगवान् (कलिंगजिन) की प्रतिमा जो कि नन्दराजा द्वारा ले जायी गई थी। उस प्रतिमा को राजा खारवेल ने मगध पर विजय प्राप्त कर पुन: वापस लाया था। तपोधन मुनियों के आवास हेतु गुफायें बनवायीं। अर्हन्मंदिर के निकट उसने एक विशाल मनोरम सभा मण्डप (अर्कासन गुम्फा) बनवाया था। जिसके मध्य में एक बहुमूल्य रत्नजड़ित मानस्तम्भ स्थापित कराया। महामुनि सम्मेलन भी कराया तथा द्वादशांग श्रुत का पाठ भी कराया था। खारवेल दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व का सर्वाधिक, शक्तिशाली, प्रतापी एवं दिग्विजयी राजा था। साथ ही वह राजर्षि परम जिन भक्त भी था। उन्होंने श्रावक के व्रत ग्रहण किए, पश्चात् गृह और राजकार्य से विराम लेकर जैन मुनि के रूप में कुमारी पर्वत पर तपश्चरण करके आत्मसाधना की। सम्राट् खारवेल का शिलालेख उड़ीसा में पुरी जिला अन्तर्गत भुवनेश्वर से तीन मील दूर खण्डगिरि पर्वत के उदयगिरि पर बने हुए हाथी गुम्फा, विशाल प्राचीन गुफा मंदिर के मुख और छत पर सत्रह पंक्तियों में लगभग ८४ फीट के विस्तार में उत्कीर्ण है। लेख के प्रारम्भ में अरिहंतों एवं सर्व सिद्धों को नमस्कार किया है। अपने समय में उन्होंने कलिंग देश (उड़ीसा) को भारत वर्ष की सर्वोपरि राज्य शक्ति बना दिया था तथा लोकहित और जैनधर्म की प्रभावना के भी अनेक चिरस्मरणीय कार्य किए थे। शिलालेख के अनुसार राज्यकाल के तेरहवें वर्ष में इस राजर्षि ने सुपर्वत—विजय—चक्र (प्रान्त) में स्थित कुमारीपर्वत पर अरिहंतों की पुण्यस्मृति में निषद्यकाएँ निर्माण करायी थीं।