1- श्रद्धा के प्रतीक भगवान् ऋषभदेव मंदिर का निर्माण रायबहादुर सेठ मूलचन्द नेमीचन्द सोनी ने राजस्थान के हृदय अजमेर नगर में करवाया था। यह कार्य मूर्धन्य विद्वान् पं. सदासुखदासजी की देख—रेख में सम्पन्न हुआ था।
2- इस मंदिर का नाम श्री सिद्धकूट चैत्यालय है, करौली के लाल पत्थर से निर्मित होने के कारण इसे लाल मंदिर तथा निर्माताओं के नाम से सम्बन्धित होने से सेठ मूलचन्द सोनी की नसियाँ या सोनी मंदिर भी कहते हैं।
3- इस मंदिर में अयोध्यानगरी, सुमेरु पर्वत आदि की जो रचना है, वह सोने से मढ़ी हुई है, भवन में अत्यन्त आकर्षक चित्रकारी है, जो लोक तथा संसार में जीव की अवस्था का दिग्दर्शन कराती है।
4- इस ऐतिहासिक मंदिर में प्रवेश करते ही अत्यन्त कलात्मक ८२ फुट ऊँचे मानस्तम्भ के दर्शन होते हैं।
5- प्रतिमा स्थापन के ५ वर्ष बाद सेठ मूलचन्द सोनी की भावना हुई कि भगवान् ऋषभदेव के पाँच कल्याणकों का मूर्त रूप में दृश्यांकन किया जाये। तदनुसार अयोध्यानगरी, सुमेरु पर्वत आदि की रचना का निर्माण कार्य जयपुर में हुआ और इसके बनने में २५ वर्ष लगे, समस्त रचना आदिपुराण के आधार पर बनायीं गयीं तथा सोने के वर्कों से ढकी हुई है। कार्य पूरा होने पर सन् १८६५ में जयपुर के म्यूजियम हाल में रचना के प्रदर्शन के लिए १० दिन तक विशाल मेला लगा रहा। तत्कालीन जयपुर नरेश महाराजा माधोसिंह जी इसमें स्वयं पधारे थे।
6- इस रचना को मंदिर के पीछे निर्मित विशाल भवन में सन् १८६५ में स्थापित किया गया। भवन के अंदर का भाग सुंदर रंगों, अनुपम चित्रकारी एवं काँच की कला से सज्जित है।