इस स्तोत्र का प्रारम्भ ‘भक्त—अमर’ शब्द से होता है, इसलिए इसका नाम भक्त ± अमर • भक्तामर स्तोत्र सर्वप्रसिद्ध है। इसमें कुल ४८ काव्य वसंततिलका छन्द में रचे गऐ हैं। आचार्य मानतुंग के समय के सम्बन्ध में दो विचारधाराएँ प्रचलित हैं–भोजकालीन और हर्षकालीन, किन्तु ऐतिहासिक विद्वान मानतुंग की स्थिति हर्षवर्धन के समय की मानते हैं। प्रसिद्ध इतिहासज्ञ विद्वान् पं. नाथूराम प्रेमी ने हर्षकालीन माना है। इस कथन से भक्तामर स्तोत्र ७वीं शताब्दी की रचना है।
१- विश्व के उत्कृष्टतम पाँच स्तोत्र में संस्कृत भाषा का भक्तामर स्तोत्र आता है। इसका वास्तविक नाम आदिनाथ स्तोत्र है। इस काव्य का प्रत्येक अक्षर एवं उसकी संयोजना अद्भुत मंत्र शक्ति को लिए हुए है।
२- इस स्तोत्र में कामना नहीं है, यह तो निष्काम भक्ति का उत्कृष्टतम स्तोत्र है। एक स्वर से इसका पाठ करने से पर्यावरण शुद्ध होता है। इस स्तोत्र को चाहे जिन तीर्थंकर के सामने पढ़ा जाये, इसकी भाव—भासना में सभी तीर्थंकर की भक्ति है।
३- इस स्तोत्र के सर्वाधिक १२४ पद्मानुवाद हुए हैं, जो कि हिन्दी, मराठी, गुजराती, मेवाड़ी, राजस्थानी, अवधी, बांग्ला, कन्नड़, तमिल के साथ—साथ उर्दू, फारसी एवं अंग्रेजी में भी उपलबध हैं। इनका संकलन ‘भक्तामर भारती’ के नाम से प्रकाशित है। पद्यानुवाद की अपेक्षा मूल रचना पढ़ना अधिक लाभकारी है।
४- इस स्तोत्र को भक्ति भाव पूर्वक निरंतर पढ़ने से कर्म निर्जरा के साथ ही सभी प्रकार की विघ्न—बाधाएँ दूर होती हैं, मनवांछित कार्य सिद्ध होते हैं, जीवन सुख—शांतिमय बनता है।
५- डॉ. श्रीमती मंजू जैन ने इस काव्य के ४५ वें श्लोक और उसके मंत्र द्वारा लगभग ५ वर्षों के अपने प्रयोग को २० कैंसर रोगियों पर अपनाकर उन्हें रोग मुक्त किया। जिसका पूरा डाक्यूमेन्टेंशन रिसर्च कार्य उन्होंने ओपन इन्टरनेशनल यूनिवर्सिटी मुम्बई में प्रस्तुत किया। ४५वें श्लोक ‘जैनिज्म मेथड ऑफ क्यूरिंग विथ स्पेशल रेफरेन्स आफ भक्तामर’ पर उन्होंने पीएच. डी. की उपाधि प्राप्त की।