सभी धर्म एवं सम्प्रदायों में वैशाख शुक्ल तीज का दिन अक्षय तृतीया पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह दिन अत्यन्त पवित्र माना जाता है। ज्योतिष विद्वानों के अनुसार इस दिन को अत्यन्त शुभ मुहूर्त के रूप में स्वीकारा गया है। बिना किसी ज्योतिषी की सलाह के भी इस दिन सभी लौकिक अथवा धार्मिक कार्य प्रारम्भ किए जा सकते हैं। इस पर्व का प्रारम्भ युग के आदि में जन्में प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ प्रभु तथा राजा सोम एवं राजा श्रेयांस से सम्बन्ध रखता है। श्रमण दीक्षा अंगीकार करने के बाद ऋषभदेव छह माह तक ध्यान में बैठे रहे। श्रावकों को दिगम्बर जैन मुनियों के आहार—दान विधि का ज्ञान न होने से उन्हें ७ माह, १३ दिन तक भी आहार का लाभ नहीं हुआ। हस्तिनापुर नगर में प्रभु के प्रवेश करते ही पूर्व भव की स्मृति (जातिस्मरण) हो आने पर राजा सोमप्रभ व श्रेयांशकुमार ने इसी दिन भक्ति भाव पूर्वक सर्वप्रथम इक्षुरस का आहार दिया था। जिसके फलस्वरूप देवों ने पंचाश्चर्य प्रकट कर इस दान की अनुमोदना की थी। जिससे यह वैशाख शुक्ल तीज की तिथि अक्षय तृतीया के रूप में प्रसिद्ध हुई।