समस्त भाषाओं और समस्त मतों का समन्वय और एकीकरण करने वाले भुवन विख्यात वीं भूवलय ग्रन्थ की रचना विक्रम की ८-९ शताब्दी में श्री कुमुदेन्दु आचार्य ने की थी।
इस ग्रन्थ में १८ महाभाषा और ७०० उपभाषाएँ चक्रबन्धों में समाहित हैं, जिन्हें आचार्य देव ने ५९ अध्यायों और १२५२ चक्रबंधों में प्रस्तुत किया है।
इसमें हडप्पा संस्कृति के कुछ ऐसे रहस्य प्रमाण प्रस्तुत हैं, जिसे अनेक विद्वान् मिलकर भी नहीं खोज पाए थे। सैंकड़ों में नहीं पढ़ पाए थे।
इसमें ओंकार की महत्ता बतलाते हुए इसे बीजाक्षर, अंक, दिव्यनाद, परमात्म वाणी, सिद्धस्वरूप, स्वर, अक्षर, शब्द रूप भी कहा है। ताल और क्रम के साथ सांगत्य छन्द में लिखा गया है। ताल और लय से युक्त छह हजार सूत्रों तथा छह लाख श्लोकों में इसकी रचना की है।
यह ग्रन्थ संसार का दशवाँ आश्चर्य माना गया है। महामहिम राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्रप्रसादजी ने भूवलय को राष्ट्रीय सम्पत्ति मानकर माइक्रो फिल्म बनवाकर राष्ट्रीय संग्रहालय में सुरक्षित करवाया।
इस ग्रन्थ में पढ़ने के लिए एक भी अक्षर नहीं है। बायें से दाये तक बराबर चले जाए तो उनके अंकों की गणना २७ होती है। इसी तरह ऊपर नीचे भी २७ अंक आयेंगे। इस तरह चारों ओर से पढ़ने पर २७ अंक ही उपलब्ध होते हैं। २७४२७ = ७२९ ।
विश्व की सभी भाषाएँ अन्तर्निहित होने से इस ग्रन्थ का नाम ‘भूवलय’ रखा गया, जो उसकी यथार्थता को सूचित करता है। इसमें मूल कन्नड़ लिपि का ही प्रयोग किया गया था।
इसमें १ से ६४ तक अंक हैं २७ कोष्टक हैं। इसे अक्षर में परिवर्तित किया जाता है। जैसे-१ का अर्थ अ ५८ का अर्थ ष, ३८ का अर्थ ट, इत्यादि।
अंग्रेजी अंक में भी इसका ट्रान्सलेशन किया जा चुका है।
भारतीय साहित्य में ऐसा अनुपम काव्य (ग्रन्थ) अभी तक कोई भी उपलब्ध नहीं है। आचार्य देशभूषणजी की कृपा से यह प्रकाश में आया है।