जैन परम्परा में दशलक्षण पर्व की समाप्ति के ठीक एक दिन बाद एक विशेष पर्व मनाया जाता है, जिसे क्षमावणी पर्व कहते हैं। विश्व के इतिहास में यह पहला पर्व है, जिसमें शुभकामना, बधाई, उपहार न देकर सभी जीवों से अपने द्वारा जाने—अनजाने में किए गए समस्त अपराधों के लिए क्षमायाचना करते हैं। क्षमा करने और क्षमा माँगने के लिए विशाल हृदय की आवश्यकता होती है। तीर्थंकरों ने सम्पूर्ण विश्व में शांति की स्थापना के लिए सूत्र दिया है—
खम्मामि सव्वजीवाणं, सव्वे जीवा खमंतु मे।
मित्ती मे सव्वभूदेसु, वेरं मज्झम ण केण वि।।
मैं सभी जीवों को क्षमा करता हूँ। सभी जीव मुझे भी क्षमा करें। मेरी सभी जीवों से मैत्री है। किसी के साथ मेरा कोई वैर भाव नहीं है। अनुसंधानकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला है कि लम्बे समय तक मन में बदले की भावना, ईर्ष्या—जलन और दूसरों के अहित का चिन्तन और प्रयास करने पर मनुष्य भावनात्मक रूप से बीमार रहने लगता है। क्षमा एक ऐसी अचूक औषधि है, जिसके द्वारा हम लम्बी बीमारियों से भी निजात पा सकते हैं। जिस प्रकार २ अक्टूबर (गाँधी जयंती) को विश्व अहिंसा दिवस घोषित किया गया है, उसी प्रकार क्षमावणी पर्व भी विश्व दिवस या ‘वर्ल्ड फारगिवनेस डे’ के रूप में मनाया जाना चाहिए। मेरे जीवन में जैन संस्कारों का गहरा असर है और मेरे ऊपर जैन मुनियों व आचार्यों की कृपा बनी हुई है। आज मैं यह घोषणा करता हूँ कि मेरे मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए मध्यप्रदेश की किसी भी आँगनवाड़ी में अण्डा नहीं परोसा जायेगा।