तर्ज— होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो……….
तुम्हें तुम हो विभूति जग की जग का है नमन तुम्हें हे माँ श्री ज्ञानमती………
बनवाया अति सुन्दर जम्बूद्वीप प्यारा लगता
जैसे हस्तिनापुर में स्वर्ग उतर आया ऊँचा
ये सुमेरु गिरि लगता जैसे गगन छुए हे माँ श्री ज्ञानमती………..
नहि किसी भी साध्वी ने कभी इतने ग्रंथ लिखे
तुमने माँ ढाई सौ से भी ज्यादा ग्रंथ लिखे
इन ग्रंथों में हे माँ तेरा अद्भुत ज्ञान दिखे। हे माँ श्री ज्ञानमती………
जो तीरथ वीरान थे उन्हें तुमने चमन किया करके विकास
उनका कई तीरथ बना दिया युग—युग तक नाम तेरा ‘प्रदीप’
अमर रहे हे माँ श्री ज्ञानूमती मेरा शत—शत नमन तुम्हें हे माँ श्री ज्ञानमती………