सन् 1965 में श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) चातुर्मास के मध्य जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी परमपूज्य 105 गणिनीप्रमुख आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी को विंध्यगिरि पर्वत पर भगवान बाहुबली के चरण सानिध्य में पिण्डस्थ ध्यान करते-करते मध्यलोक की सम्पूर्ण रचना, तेरहद्वीप का अनोखा दृश्य ध्यान की तरंगों में दिखाई दिया।
पुनः दो हजार वर्ष पूर्व के लिखित तिलोयपण्णत्ति, त्रिलोकसार आदि ग्रंथों में उसका ज्यों का त्यों स्वरूप देखकर वह रचना कहीं धरती पर साकार करने की तीव्र भावना पूज्य माताजी के हृदय में आई और उसका संयोग बना हस्तिनापुर में। कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, बिहार, बंगाल, राजस्थान, मध्यप्रदेश, दिल्ली आदि प्रांतों में विहार करने के बाद सन् 1974 में पूज्य आर्यिका श्री का ससंघ पदार्पण हस्तिनापुर तीर्थ पर हुआ। बस तभी से हस्तिनापुर ने नये इतिहास की रचना प्रारंभ कर दी।
यह एक अनहोना संयोग ही है कि आज से करोड़ों वर्ष पूर्व तृतीय काल के अंत में प्रथम तीर्थंकर भगवान
ऋषभदेव के प्रथम आहार दाता-हस्तिनापुर के युवराज श्रेयांस ने स्वप्न में सुमेरु पर्वत देखा था और आज पंचमकाल में उसी हस्तिनापुर की वसुंधरा पर सुमेरु पर्वत से समन्वित पूरे जम्बूद्वीप की ही रचना पूज्य माताजी की पावन प्रेरणा से साकार हो उठी है।
250 फुट के व्यास में सफेद और रंगीन संगमरमर पाषाणों से निर्मित जैन भूगोल की अद्वितीय वृत्ताकार जम्बूद्वीप रचना का निर्माण हुआ है, जिसके बीचों बीच में हल्के गुलाबी संगमरमर के 101 फुट ऊँचे सुमेरु पर्वत की शोभा सभी के मन को आकर्षित करती है।

आगे के पर्वत और क्षेत्र विदेह पर्यन्त इससे दूने-दूने प्रमाण वाले होते गये हैं, पुनः विदेह के बाद नील पर्वत से लेकर आधे-आधे प्रमाण वाले होते गए हैं। इन हिमवान् आदि पर्वतों पर क्रम से पद्म, महापद्म, तिगिञ्छ, केसरी, महापुण्डरीक और पुण्डरीक ऐसे छह सरोवर हैं। पद्म सरोवर के पूर्व-पश्चिम से गंगा-सिन्धु नदी निकलती है जो कि भरतक्षेत्र में बहती है। इसी पद्म सरोवर के उत्तर तोरण द्वार से रोहितास्या नदी निकलकर हैमवत क्षेत्र में चली जाती है तथा महापद्म सरोवर के दक्षिण तोरण द्वार से रोहित नदी निकलकर हैमवत क्षेत्र में चली जाती है। इस प्रकार मध्य के सरोवरों से दो-दो नदियाँ एवं अन्तिम शिखरी सरोवर से प्रथम सरोवर के समान तीन नदियाँ निकली हैं। ऐसी ये गंगा-सिन्धु, रोहित-रोहितास्या, हरित-हरिकान्ता, सीता-सीतोदा, नारी-नरकान्ता, सुवर्णकूला-रूप्यकूला और रक्ता-रक्तोदा नाम की चौदह महानदियां हैं जो कि भरत आदि सात क्षेत्रों में क्रम से दो-दो बहती हैं।





































