(२३०)
पर अब भी मुझसे जो कहिए, तो विष को मैं पी सकती हूँ।
यदि कहें तुला पर चढ़ जाऊँ, अग्नी प्रवेश कर सकती हू।।
कुछ क्षण सोचा फिर बोल पड़े, अग्नी प्रवेश कर दिखलाओ।
दुनिया में अपने शील और,साहस का अलख जला जाओ।।
(२३१)
जनता में हाहाकार मचा, सबने मिल बहुत दुहाई दी।
सीताजी महासती हैं यह कह कहकर बहुत सफाई दी।।
लवकुश भी सुनकर काँप उठे,क्यों माँ ने मरण स्वीकार किया।
पर रामवचन के आगे सब, जनमानस उस दिन हार गया।।
(२३२)
फिर क्या था उनकी आज्ञा से, गहरी चौड़ी बावड़ी खुदी।
चंदन और अगुरू की लकड़ी से, भीषण अग्नि प्रज्जवित हुई।।
उसकी लपटों को देख स्वयं,रघुवर का मन भी डोल उठा।
ये मैंने क्या कर डाला है, उनका अंतस भी खौल उठा।।
(२३३)
इतिहास जगत में बेमिसाल,यह सबसे कठिन परीक्षा थी।
हनुमान लखन रो रहे सभी,लवकुश को आई मूच्र्छा थी।।
हो गये दंग सब देख वहाँ, उस मुख पे नहीं उदासी थी।
जो अग्निकुंड में कुछ क्षण में, जा करके समाने वाली थी।।
(२३४)
हे अग्निदेव ! यदि सपने में, परपुरुष मात्र को चाहा हो।
यदि रामचंद्र के सिवा कोई, मेरे जीवन में आया हो ।।
तो भस्म मुझे तू कर देना, वरना तू शीतल हो जाना।
दुनिया के लोगों ने मुझको, अब तलक नहीं है पहचाना।।
(२३५)
इतना कहकर वो कूद पड़ी, सिद्धों को करके नमस्कार।
इंद्रों का आसन कांप उठा, सर्वत्र मच गया हाहाकार।।
संयोग देखिए उसी समय, सब इंद्र अयोध्या आये थे।
केवली सकलभूषण मुनि का,कल्याणोत्सव वहां मनाये थे।।