बीस प्ररूपणाओं द्वारा अथवा बीस प्रकरणों का आश्रय लेकर यहाँ जीवद्रव्य का प्ररूपण किया जाता है। ‘‘जीवट्ठाण’’ नामक सिद्धांतशास्त्र में अशुद्ध जीव के १४ गुणस्थान, १४ मार्गणा और १४ जीवसमास स्थानों का जो वर्णन है वही इसका आधार है। संक्षेप रुचि वाले शिष्यों की अपेक्षा से बीस प्ररूपणाओं का गुणस्थान और मार्गणा इन दो ही प्ररूपणाओं में अंतर्भाव हो जाता है अतएव संग्रहनय से दो ही प्ररूपणा हैं अर्थात् गुणस्थान यह एक प्ररूपणा हुई और चौदह मार्गणाओं में जीवसमास, पर्याप्ति, प्राण, संज्ञा और उपयोग इन पाँचों प्ररूपणाओं का अंतर्भाव हो जाता है। जैसे— इंद्रिय मार्गणा और कायमार्गणा में जीवसमास गर्भित हो जाते हैं इत्यादि। इसलिये अभेद विवक्षा से गुणस्थान और मार्गणा ये दो ही प्ररूपणा हैं किन्तु भेद विवक्षा से बीस प्ररूपणाएँ होती हैं।
‘‘संक्षेप’’ और ‘‘ओघ’’ ये गुणस्थान के पर्यायवाची नाम हैं तथा ‘‘विस्तार’’ और ‘‘आदेश’’ ये मार्गणा के पर्यायवाची नाम हैं। मोह तथा योग के निमित्त से होने वाले आत्मा के परिणामों का नाम गुणस्थान है और अपने-अपने कर्म के उदय से होने वाली मार्गणाएं हैं।
गुणस्थान का सामान्य लक्षण—दर्शनमोहनीय आदि कर्मों की उदय, उपशम, क्षय, क्षयोपशम आदि अवस्था के होने पर होने वाले जीव के परिणाम गुणस्थान कहलाते हैं। गुणस्थान के १४ भेद हैं।