प्रथम ढाल प्रश्नोत्तरी
काव्य प्रश्नोत्तरी
-दोहा-
प्रश्न १ – एक प्रश्न पूछू सहज, बोलो सोच विचार।
तीन भुवन में कौन सी, वस्तु सार में सार ?।१।।
उत्तर – वीतराग विज्ञानता तीनों लोकों में सारभूत वस्तु है।
प्रश्न २ – लोक में कितने जीव हैं, क्या है उनकी चाह ?
गुरु क्यों उनको बोधते, क्या है उनकी चाह ?
उत्तर – लोक में अनन्त जीव हैं, वे सुख चाहते और दु:ख से डरते हैं तथा गुरुजन करुणा की भावना से उनके दु:खों को नष्ट करने एवं सुख प्राप्त कराने हेतु उन्हें सम्बोधन प्रदान करते हैं।
प्रश्न ३ – किस कारण इस जगत में, भूला आतम राम ?
कैसे रुक सकता भ्रमण, कैसे हो कल्याण ?।३।।
उत्तर – मोहरूपी मदिरा को पीकर यह प्राणी अपनी आत्मा को भूल गया है और गुरु की शिक्षा को स्थिरतापूर्वक सुनने से भव भ्रमण समाप्त होकर जीव का कल्याण हो सकता है।
प्रश्न ४ – भ्रमण कथा इस जीव की, कब से है प्रारंभ ?
कितने कालों तक रहा, तन निगोद संबंध ?।४।।
उत्तर – इस जीव की संसार में भ्रमण की कथा अनादिकालीन-बहुत लम्बी है। अपना अनन्तकाल उसने एकेन्द्रिय निगोदपर्याय में बिताया है।
प्रश्न ५ – उस निगोदिया जीव के, कौन सी इन्द्रिय होय ?
उनका कहाँ निवास है, उनकी गति क्या होय ?।५।।
उत्तर – निगोदिया जीव के एक स्पर्शन इन्द्रिय होती है, सातवें नरक के नीचे उनका निवास रहता है तथा उनकी तिर्यंचगति मानी जाती है।
प्रश्न ६ – क्या गिनती उस जीव के, जन्म मरण की ख्यात ?
पुन: वहाँ से निकलकर, जीव कहाँ को जात ?।६।।
उत्तर – वह निगोदिया जीव एक श्वांस में अठारह बार जन्म-मरण करता है पुन: कभी पुण्य योगवश वहाँ से निकलकर वह पंचस्थावरों में जन्म ले लेता है।
प्रश्न ७ – त्रस पर्याय कही किसे, किस उपमा से ख्यात ?
क्यों दुर्लभ यह काय है, मुझे बताओ बात ?।७।।
उत्तर – दो इन्द्रिय से लेकर पाँच इन्द्रिय तक के जीवों का शरीर त्रसकाय कहलाता है, उस त्रस पर्याय को चिन्तामणि रत्न की उपमा दी गई है और जैसे विशेष पुण्योदय से किसी मनुष्य विशेष को ही दुर्लभ चिन्तामणि रत्न प्राप्त होता है वैसे ही स्थावर अवस्था से विशेष पुण्य का उदय होने पर ही जीव को त्रस पर्याय मिलती है, इसलिए उसे दुर्लभ कहा है।
प्रश्न ८ – पञ्चेन्द्रिय पशु भी हुआ, तो भी हुआ न ज्ञान।
बतलाओ क्यों व्रूर पशु, हिंसा करता जान।।८।।
उत्तर – कदाचित् पञ्चेन्द्रिय पशु की पर्याय मे भी जीव ने जन्म ले लिया, तो भी वहाँ मन सहित न होने से अज्ञानी ही बना रहा और यदि व्रूâर पशु भी हो गया, तो अपने को बलवान् मानकर निर्बल पशुओं की हिंसा करके पाप का ही बंध करता रहा।
प्रश्न ९ – पशुगति के कुछ दुख सहज, दिखते सदा प्रत्यक्ष।
उनको बतलाओ मुझे, यदि तुम श्रोता दक्ष ?।९।।
उत्तर – छेदन, भेदन, भूख, प्यास, सर्दी, गरमी, बोझा ढोना, वध, बंधन आदि पशुगति के दु:ख प्रत्यक्ष में दिखते हैं।
प्रश्न १० – नरकभूमि के स्पर्श से, कैसा दुख हो प्राप्त?
नदी कौन सी बह रही, क्या उसमें है पदार्थ ?।१०।।
उत्तर – नरकभूमि को छूने मात्र से हजारों बिच्छुओं के एक साथ काटने से भी अधिक दु:ख प्राप्त होता है। वहाँ बहने वाली नदी का नाम है वैतरणी, जिसमें खून-पीव एवं कीड़े भरे रहते हैं।
प्रश्न ११ – नरक धरा में कौन सा, कष्ट प्रदाता वृक्ष ?
कैसी शीत व उष्णता, बतलाओ हे भव्य!।११।।
उत्तर – नरक में सेमर नाम का वृक्ष अपने तलवार के समान पत्तों से नारकियों के शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके महान दु:ख देता है तथा वहाँ मेरुपर्वत के समान विशाल लोहे के गोले के भी गलने जैसी सर्दी-गर्मी पड़ती है।
प्रश्न १२ – कौन देव जाकर वहाँ, करवाते संघर्ष ?
कैसी प्यास की वेदना, होती बोलो शांत ?।१२।।
उत्तर – असुरकुमार नामक जाति के देव तृतीय नरक तक जाकर उन नारकियों को आपस में लड़ाते हैं। वहाँ प्यास की इतनी बाधा होती है कि समुद्र भर भी पानी पी जावे तो शांत नहीं होगी किन्तु एक बूंद पानी भी वहाँ नहीं मिलता है।
प्रश्न १३ – कैसी भूख की वेदना, कैसे हो वह शांत ?
नरक में कितने दिन सहा, यह दु:ख फिर कहाँ जन्म ?।१३।।
उत्तर – तीन लोक का पूरा अन्न खा जावे ऐसी भूख नरक में लगती है किन्तु एक कण भी वहाँ नहीं मिलता है। दस हजार वर्ष से लेकर तैंतीस सागरों तक ये दु:ख नरक में सहन करने पड़ते हैं पुन: कर्मयोग से वहाँ से निकलकर मनुष्य गति में भी जन्म धारण कर लेते हैं।
प्रश्न १४ – मानुष तन अनमोल है, फिर भी वहाँ हैं दुक्ख।
जैसा ग्रन्थों में कहा, बतलाओ तुम भव्य!।१४।।
उत्तर – मनुष्यगति में नव मास तक माता के गर्भ में रहना पड़ता है, जहाँ अंगों के सिकुड़ने से अत्यन्त दु:ख होता है तथा जन्म लेते समय तीव्र वेदना होती है जो बाद में मनुष्य भूल जाता है और इस अनमोल मानव शरीर से भी अन्याययुक्त कार्य करने लगता है।
प्रश्न १५ – मानव की बालक तथा, तरुण वृद्ध पर्याय।
बोलो कैसे अन्त तक, व्यर्थ बीतती जाय ?।५।।
उत्तर – बाल्यावस्था अज्ञानता में, तरुण अवस्था विषय सेवन में और वृद्धावस्था अर्धमृतक के समान इस मानव ने अनादिकाल से व्यतीत की है, इसीलिए आत्मस्वरूप की पहचान नहीं हो पाई है।
प्रश्न १६ – देव के कितने भेद हैं, वहाँ तो सुख ही सुक्ख ?
लेकिन क्या कोई वहाँ, बतलाओ है दुक्ख ?।१६।।
उत्तर – देव चार प्रकार के माने गये हैं-१. भवनवासी २. व्यन्तरवासी ३. ज्योतिर्वासी ४. कल्पवासी। देवों को स्वर्ग में किसी प्रकार का शारीरिक दु:ख नहीं होता है लेकिन वहाँ विषय भोगों का तथा अपने से अधिक वैभव वाले देवों को देखकर मिथ्यादृष्टि देवों को मानसिक दु:ख उत्पन्न हो जाता है।
प्रश्न १७ – मिथ्यादृष्टी देवता, कहाँ तक मरकर जांय ?
प्रथम ढाल का सार क्या, बतलाओ यह चाह ?।१७।।
उत्तर – मिथ्यादृष्टि देव मरकर एकेन्द्रिय स्थावर जीवों तक की योनि में जन्म धारण कर लेते हैं। छहढाला की प्रथम ढाल का सार यह है कि चारों गतियों में सारभूत जो सम्यग्दर्शन है उसे प्राप्त कर अपने भव भ्रमण की सीमा निर्धारित कर लेना चाहिए।