अथ तेषां मन्दराणामुभयपाश्र्वस्थितक्षेत्राणां नामानि कथयति—
दक्खिणदिसासु भरहो हेमवदो हरिविदेहरम्मो य। हइरण्णवदेरावदवस्सा कुलपव्वयंतरिया।।५६४।।
दक्षिणदिशासु भरतो हैमवतः हरिविदेहरम्यश्च। हैरण्यवदैरावतवर्षाः कुलपर्वतान्तरिताः।।५६४।।
दक्खिण। तेषां मन्दराणां दक्षिणदिशाया आरभ्य भरतः हैमवतः हरिः विदेहः
रम्यकः हैरण्यवतः ऐरावत इत्येते वर्षा हिमवदादिकुलपर्वतान्तरिताः।।५६४।।
उन सुमेरु पर्वतों के दोनों पाश्र्वभागों में स्थित क्षेत्रों के नाम कहते हैं—
गाथार्थ—उन मन्दर मेरुओं की दक्षिण दिशा से लगाकर क्रमशः (१) भरत (२) हैमवत (३) हरि (४) विदेह (५) रम्यक (६) हैरण्यवत और (७) ऐरावत ये सात क्षेत्र हैं, जो कुलपर्वतों से अन्तरित हैं अर्थात् जिनके बीच में कुल पर्वतों के होने से अन्तर प्राप्त है।।५६४।। विशेषार्र्थ—उन सुमेरु पर्वतों की दक्षिण दिशा से प्रारम्भ कर क्रमशः भरतादि सात क्षेत्र हैं। जिनमें बीच-बीच में कुल पर्वतों के कारण अन्तर है अर्थात् इन क्षेत्रों के अन्तराल में कुल पर्वत हैं। यथा—भरत और हैमवत के बीच में हिमवान् पर्वत है। हैमवत और हरि के बीच में महाहिमवान्, हरि और विदेह के बीच निषध, विदेह और रम्यक के बीच में नील, रम्यक और हैरण्यवत के बीच में रुक्मी तथा हैरण्यवत और ऐरावत के बीच में शिखरिन् पर्वत हैं।