अब मानुषोत्तर पर्वत का स्वरूप तीन गाथाओं द्वारा कहते हैं—
गाथार्थ—पुष्कर द्वीप के मध्य में मानुषोत्तर पर्वत है। वह अभ्यन्तर में टज्र्छिन्न और बाह्य भाग में क्रमिक वृद्धि एवं हानि को लिए हुए है। स्वर्ण सदृश वर्ण वाला एवं नदी निकलने के चौदह गुफाद्वारों से युक्त है।।९३७।।
विशेषार्थ—पुष्कर द्वीप के मध्य में मानुषोत्तर नाम का पर्वत स्थित है। वह अभ्यन्तर मनुष्यलोक की ओर टज्र्छिन्न अर्थात् नीचे से ऊपर तक एक सदृश है तथा बाह्य-तिर्यग्लोक की ओर शिखर से क्रमिक वृद्धि और मूल से क्रमिक हानि को लिए हुए है। उसका वर्ण स्वर्ण सदृश है तथा चौदह महानदियों के निर्गम स्वरूप चौदह गुफाद्वारों से युक्त है।
गाथार्थ—मानुषोत्तर पर्वत का उदय, भू व्यास और मुख व्यास क्रमशः एक हजार सात सौ इक्कीस योजन, एक हजार बावीस योजन और चार सौ चौबीस योजन प्रमाण है।।९३८।।
विशेषार्थ—मानुषोत्तर पर्वत की उँचाई १७२१ योजन, भूव्यास अर्थात् मूल में चौड़ाई १०२२ योजन और मुख व्यास अर्थात् ऊपर की चौड़ाई ४२४ योजन प्रमाण है तथा इसकी नींव १७२१/४ · ४३० योजन १ कोश है।
गाथार्थ—उस मानुषोत्तर पर्वत के शिखर पर चार हजार धनुष उँची और सवा कोस (१-१/४) चौड़ी वलयाकार वेदी शोभायमान है।।९३९।।