अथात्र स्थितानि कूटानि कथयति —
णइरिदिवायव्वदिसं वज्जिय छस्सुवि दिसासु कूडाणि।
तियतियमावलियाए ताणब्भंतरदिसासु चउवसई१।।९४०।।
नैऋतीं वायव्यदिशं वर्जयित्वा षट्स्वपि दिशासु कूटानि।
त्रिकत्रिकमावल्या तेषामभ्यन्तरदिशासु चतुष्कवसत्यः।।९४०।।
णइ।
नैऋतीं वायवीं च दिशं वर्जयित्वा षट्स्वपि दिशासु पंक्तिक्रमेण त्रीणि त्रीणि कूटानि सन्ति।
तेषामभ्यन्तरदिशासु चतुरस्रा वसत्यः सन्ति।।९४०।।
अथ तत्वूकूटवासिदेवानाह—
अग्गीसाकूडे गरुडकुमारा वसंति सेसे दु।
दिग्गयबारकूडे सुवण्णकुलदिक्कुमारीओ।।९४१।।
अग्नीशानषट्वूकूटे गरुडकुमारा वसन्ति शेषुषु तु।
दिग्गतद्वाकूशकूटेषु सुवर्णकुलदिक्कुमार्यः।।९४१।।
अग्गी।
आग्नेय्यैशानदिव्स्थेषु कू कूटटेषु गरुडकुमारा वसन्ति।
शेषेषु पुनर्दिग्गत द्वाकूशकूटेषु सुपर्णकुलदिक्कुमार्यो वसन्ति।।९४१।।
अथ मानुषोत्तरस्य स्थानादिकमाह— पणदाललक्खमाणुसखेत्तं परिवेढिऊण सो होदि।
उदयचउत्थोगाढो पुक्खरबिदियद्धपढमम्हि।।९४२।।
पञ्चचत्वारिंशल्लक्षमानुषक्षेत्रं परिवेष्ट्य स भवति।
उदयचतुर्थावगाधः पुष्करद्वितीयार्धप्रथमे।।९४२।।
पण।
पञ्चोत्तरचत्वारिंशल्लक्षयोजन ४५००००० प्रमितमानुषक्षेत्रं परिवेष्ट्य पुष्करद्वीपद्वितीयार्धस्य
प्रथम भागे स मानुषोत्तरो भवति। तस्यावगाधः उदयचतुर्थांशः ४३०-१/४ स्यात्।।९४२।।
अब इस पर्वत के ऊपर स्थित कूट कहते हैं— गाथार्थ—नैऋत्य और वायव्य इन दो विदिशाओं को छोड़कर अवशेष छह दिशाओं में पंक्तिरूप तीन-तीन कूट हैं तथा उन कूटों के अभ्यन्तर की ओर चार दिशाओं में चार वसतिका हैं।।९४०।।
विशेषार्थ—उस मानुषोत्तर पर्वत पर नैऋत्य और वायव्य इन दो दिशाओं को छोड़कर अवशेष छह दिशाओं में पंक्तिस्वरूप तीन-तीन कूट हैं तथा उन कूटों के अभ्यन्तर अर्थात् मनुष्यलोक की ओर चार दिशाओं में चार वसतिका अर्थात् जिनमन्दिर हैं।
उन कूटों में बसने वाले देवों को कहते हैं— गाथार्थ—आग्नेय और ईशान दिशा सम्बन्धी छह कूटों में गरुड़कुमार देव तथा अवशेष दिशागत बारह कूटों में सुपर्णकुमार देव एवं दिक्कुमारी देवांगनाएँ निवास करती हैं।।९४१।।
आगे मानुषोत्तर पर्वत का स्थान आदि कहते हैं— गाथार्थ—पुष्कर द्वीप के द्वितीय अर्ध भाग के प्रथम भाग में ४५००००० योजन प्रमाण मनुष्यलोक को वेष्टित किए हुए मानुषोत्तर पर्वत है। जिसका अवगाध उँâचाई का चतुर्थ भाग प्रमाण है।।९४२।।