अब रुचक पर्वत के ऊकूटत वूकूटउनमें निवास करने वाली देवांगनाएँ और उन देवांगनाओं के कार्य तेरह गाथाओं द्वारा कहते हैं—
गाथार्थ—रुचकगिरि पर्वत के ऊपर पूर्वादि चारों दिशाओं में पृथव्-पृथव् कूटठ वूकूट। जिनके अभ्यन्तर की ओर चारों दिशाओं मेंकूटर कूटकूट। कूटर कूटकूट अभ्यन्तर चार दिशाओं में पुनःकूटर कूट और सर्व अभ्यन्तर चार दिशाओं में चार जिनेकूट वूकूटट।।९४७।।
विशेषार्थ—रुचक पर्वत पर पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर इन चार दिशाओं में से पृथव-पृथव् दिशा में पंक्तिक्रम से अर्थात् पंक्तिबद्ध कूटठ वूकूटट। कूटठ वूकूटकूट अभ्यन्तर चारों दिशाओं मेंकूटर कूट अर्थात् प्रत्येक दिशा मेंकूटएक वूकूटट इनकूट वूकूटकूट अभ्यन्तर मेंकूट व जो एक-एक दिशा में एक-एक हैं। इस प्रकार प्रत्येक दिशा मेंकूट वूकूटकूट अभ्यन्तर में तीकूटन कूट हैं जिनमें चार सर्व अभ्यकूटर वूकूटनेन्द्र सम्बन्धी हैं अर्थात् इनकूट कूटपर जिनेन्द्रभवन हैं, देवियों का वास नहीं है।
गाथार्थ—रुचक पर्वत के ऊपर पूर्व दिशा में १ कनक, २ काञ्चन, ३ तपन, ४ स्वस्तिकूट कूट सुभद्र, ६ अञ्जनक, ७ अञ्जनमूल और ८ वङ्काकूट के कूट, जिनमें क्रम से विजया, वैजयन्ती, जयन्ती, अपराजिता, नन्दा, नन्दवती, नन्दोत्तरा और नन्दिषेणा ये आठ देवकुमारियाँ निवास करती हैं।।९४८, ९४९।।
विशेषार्थ—रुचक पर्वत के ऊपर पूर्व दिशाकूट कनकवूकूटट विजया, काञ्चन में वैजयन्ती, तपन में जयन्ती, स्वस्तिक में अपराजिता, सुभद्र में नन्दा, अञ्जनक में नन्दवती, अञ्जनमूल में नन्दोत्तराकूटवङ्कावूकूटट नन्दिषेणा देवकुमारी निवास करती हैं। ये भृङ्गार धारण कर माता की सेवा करती हैं।
गाथार्थ—दक्षिण दिशा में १ स्फटिक, २ रजत, ३ कुमुद, ४ नलिन, ५ पद्म, ६ शशि, ७ वैश्रवण और ८वैडूर्यकूट आठ वूकूटट। इनमें क्रम से इच्छा, समाहारा, सुप्रकीर्णा, यशोधरा, लक्ष्मी, शेषवती, चित्रगुप्ता और वसुन्धरा ये आठ देवांगनाएँ रहती हैं तथा १ अमोघ, २ कूटक वूकूटटमन्दर, ४ हैमवत, ५ राज्य, ६ राज्योत्तम, ७ चन्द्र और ८ सुदर्शन ये पश्चिम दिशा कूटठ वूकूटट और इन पर क्रम से इलादेवी, सुरादेवी, पृथ्वी, पद्मावती, एकनासा, नवमिका, सीता और भद्रा ये आठ देवकुमारियाँ रहती हैं। इसके बाद १ विजय, २ वैजयन्त, ३ जयन्त, ४ अपराजित, ५ कुण्डल, ६ रुचक, ७ रत्नवत् और ८ रत्न ये उत्तर दिशा सम्बन्धीकूटठ वूकूटट, इनमें क्रम से अलंभूषा, मिश्रकेशी, पुण्डरीकिणी, वारुणी, आशा, सत्या, ह्री और श्री ये आठ देवकुमारियाँ निवास करती हैं। पूर्व दिशा सम्बन्धी देवकुमारियाँ भृङ्गार धारण कर, दक्षिणगत देवियाँ मुकुरुन्द (दर्पण), पश्चिमगत देवियाँ तीन छत्र और उत्तरगत देवियाँ चमर धारण कर महाप्रमोद से युक्त होती हुई तीर्थज्र्र के जन्मकाल में तीर्थज्र्र की माता की सेवा करती हैं।।९५० से ९५६।।
विशेषार्थ—दक्षिण दिशा मेंकूटटिक वूकूट इच्छा नाम की देवकुमारी वास करती कूटरजत वूकूटट समाहारा, कुमुद में सुप्रकीर्णा, नलिन में यशोधरा, पद्म में लक्ष्मी, शशि में शेषवती, वैश्रवण में चित्रगुप्ता और वैडूर्य में वसुन्धरा ये आठ देवांगनाएँ रहती हैं। ये आठों देवकुमारियाँ हाथ में दर्पण लेकर माता की सेवा करती हैं। पश्चिम दिशा कूटमोघ वूकूट इलादेवी, स्वस्तिक में सुरादेवी, मन्दर में पृथ्वी, हैमवत में पद्मावती, राज्य में एकनासा, राज्योत्तम में नवमिका, चन्द्र में सीता और सुदर्शन में भद्रा नाम की देवकुमारियाँ रहती हैं। ये हाथ में तीन छत्र धारण कर अति प्रमोदयुक्त होती हुई जिनमाता की सेवा करती हैं। इसके बाद उत्तरदिशाकूटविजयवूकूटट अलंभूषा, वैजयन्त में मिश्रकेशी, जयन्त में पुण्डरीकिणी, अपराजित में वारुणी, कुण्डल में आशा, रुचक में सत्या, रत्नवत् में ह्री और रत्न में श्री देवियाँ रहती हैं। ये सभी जिनेन्द्र भगवान के जन्मकाल में चँवर धारण कर अतिप्रमोदपूर्वक जिनमाता की सेवा करती हैं।
गाथार्थ—रुचक पर्वत के कूटन्तर वूकूटकूट से पूर्व और दक्षिण में क्रमशः विमल और नित्यालोक तथा पश्चिम और उत्तर में क्रमशः स्वयम्प्रभ और नित्योद्योकूटम के वूकूटट। इनमें क्रम से कनका, शतह्रदा, कनकचित्रा और सौदामिनी ये चार देवियाँ रहती हैं। ये तीर्थंज्र्र के जन्मकाल में सर्वदिशाओं को निर्मल करतीकूट। इन वूकूटकूट अभ्यन्तर की ओर चारों दिशाओं में क्रम से वैडूर्य, कूट, मणिकूट राज्योत्तकूट चार कूट। इनमें क्रम से रुचका, रुचककीर्ति, रुचककान्ता और रुचकप्रभा ये चार देवियाँ रहती हैं। ये तीर्थंज्र्र के जन्म समय जात कर्म करने में कुशल होती हैं।।९५७-९५८-९५९।।
विशेषार्थ—रुचक पर्वत के कूटन्तर वूकूकूट पूर्वदिशा कूटविमल वूकूटजिसमें कनका देवी वास करती हैं। दक्षिण के निकूटलोक वूकूट शतह्रदा, पश्चिम के स्वकूटभ वूकूटट कनकचित्रा और उत्तर के नित्योकूटत वूकूटट सौदामिनी देवी रहती हैं। ये चारों देवियाँ तीर्थज्र्र के जन्मकाल में सम्पूर्ण दिशाओं को प्रसन्न रखती हैंकूटइन वूकूटकूट अभ्यन्तर की ओर पूर्व केकूटर्य कूकूट रुचका, दक्षिण दिशा कूटचक वूकूट रुचककीर्ति, पश्चिम दिशाकूटमणिवूकूटट रुचककान्ता और उत्तर दिशा के राज्योकूटम वूकूटट रुचकप्रभा ये चार देवियाँ रहती हैं। तीर्थज्र्र के जन्म समय में ये जातकर्म करती हैं। ये सभी जातकर्म में अतिनिपुण होती हैं।