रम्मकभोगखिदीए उत्तरभागम्मि होदि रुग्मिगिरी। महहिमवंतसरिच्छं सयलं चिय वण्णणं तस्स२।।२३४०।।
णवरि य ताणं कूडद्दहपुरदेवीण अण्णणामािंण। सिद्धो रुम्मीरम्मकणरकंताबुद्धिरुप्पो त्ति।।२३४१।।
हेरण्णवदो मणिकंचणकूडो रुम्मियाण तहा। कूडाण इमा णामा तेसुं जिणमंदिरं पढमकूडे।।२३४२।।
सेसेसुं कूडेसुं वेंतरदेवाण होंति णयरीओ। विक्खादा ते देवा णियणियकूडाण णामेिंह।।२३४३।।
रम्यक भोगभूमि के उत्तरभाग में रुक्मिपर्वत है। उसका सम्पूर्ण वर्णन महाहिमवान् के सदृश समझना चाहिए।।२३४०।। विशेष इतना है कि यहाँ उन कूट, द्रह, पुर और देवियों के नाम भिन्न हैं। सिद्ध, रुक्मि, रम्यक, नरकान्ता, बुद्धि, रूप्यकूला, हैरण्यवत और मणिकांचन, ये रुक्मिपर्वत पर स्थित उन आठ कूटों के नाम हैं। इनमें से प्रथम कूट पर जिनमन्दिर और शेष कूटों पर व्यन्तरदेवों की नगरियाँ हैं वे देव अपने-अपने कूटों के नामों से विख्यात हैं।।२३४१-२३४३।।