इस प्रथम द्वीप तथा लवणसमुद्र का स्वामी क्रम से अनादर नाम का व्यन्तर देव और सुस्थिर (सुस्थित) देव ये दो व्यन्तर देव हैं। (धातकीखण्ड द्वीप के अधिपति) प्रभास और प्रियदर्शन नाम के दो व्यन्तर देव हैं।।२४।। दक्षिण व उत्तर भाग में स्थित काल और महाकाल नामक व्यन्तर देव कालोद समुद्र के तथा पद्म और पुण्डरीक नामक दो देव पुष्करद्वीप के अधिपति हैं।।२५।। चक्षुष्मान् और सुचक्षु नाम के दो व्यन्तर देव मानुषोत्तर पर्वत के अधिपति हैं। इस प्रकार दो-दो देव आगे के द्वीप और समुद्र में भी जानना चाहिये। श्रीप्रभ और श्रीधर नाम के दो व्यन्तर देव पुष्करवर समुद्र के, वरुण और वरुणप्रभ नाम के दो व्यन्तर देव वारुणीवर द्वीप के तथा मध्य और मध्यम नाम के दो देव वारुणीवर समुद्र के अधिपति हैं।।२६-२७।। पाण्डुर और पुष्पदन्त, विमल और विमलप्रभ, घृतद्वीप के दक्षिण में सुप्रभ और उत्तर में महाप्रभ, आगे कनक और कनकाभ, पूर्ण और पूर्णप्रभ, गन्ध और महागन्ध, नन्दी और नन्दिप्रभ, भद्र और सुभद्र तथा अरुण और अरुणप्रभ; (ये दो-दो देव क्रम से क्षीरवर द्वीप, क्षीरवर समुद्र, घृतवर द्वीप, घृतवर समुद्र, इक्षुरस (क्षौद्रवर) द्वीप, इक्षुरस (क्षौद्रवर) समुद्र, नन्दीश्वर द्वीप, नन्दीश्वर समुद्र और अरुण द्वीप; इन द्वीप-समुद्रों के अधिपति हैं।) सुगन्ध और सर्वगन्ध नाम के दो व्यन्तरदेव अधिपति माने गये हैं। इनमें यहाँ प्रथम कहा गया देव दक्षिण दिशा का तथा दूसरा देव उत्तर दिशा का अधिपति है।।३१।।