एक्कारसट्ठणवणव अट्ठे क्कारस हिमादिकूलाणि।
वेयड्ढाणं णवणव पुव्वगकूलम्हि जिणभवणं१।।७२०।।
एकादशाष्ट नव नव अष्टैकादश हिमादिकूटानि।
विजयार्धानां नव नव पूर्वंगकूटे जिनभवनानि।।७२०।।
एक्का।
एकादश ११ अष्ट ८ नव ९ नव ९ अष्ट ८ एकादश ११ प्रमितानि यथासंख्यं हिमवदादि-
कुलपर्वतोद्दपरि स्थितकूटानि विजयार्धानां तूपरि नव ९ नव ९ कूटानि।
तत्र पूर्वदिग्गतकूटे जिनभवनानि सन्ति।।७२०।।
अर्थ उक्तकूटानां नामादिवं गाथादशकेन निगदति-
कमसो सिद्धायदणं हिमवं भरहं इला य गंगा य।
सिरिकूडरोहिदस्सा िसधु सुरा हेमवदय वेसवणं।।७२१।।
पढमे जिणिंदगेहं देवीओ जुवदिणामकूडेसु।
सेसेसु कूडणामा वेंतरदेवावि णिवसंति।।७२२।।
वट्टा सव्वे कूटा रयणमया सगणगस्स तुरियुदया।
तत्तिय भूवित्थारा तदद्धवदणा हु सव्वत्थ।।७२३।।
क्रमशः सिद्धायतनं हिमवान् भरतं इला च गङ्गा च।
श्रीकूटं रोहितास्या सिन्धुः सुरा हैमवतवं वैश्रवणं।।७२१।।
प्रथमे जिनेन्द्रगेहं देव्यो युवतिनामकूटेषु।
शेषेषु कूटनामाना व्यन्तरदेवा अपि निवसन्ति।।७२२।।
वृत्ताः सर्वे कूटा रत्नमयाः स्वकनगस्य तुर्योदयाः।
तावद्भूविस्ताराः तदर्धवदनाः हि सर्वत्र।।७२३।।
कमसो।
क्रमशस्तेषां नामानि सिद्धायतनं हिमवान् भरतं इला च
गङ्गा च श्रीकूटं रोहितास्या सिन्धुः सुरा हैमवतवं वैश्रवणं।।७२१।।
पढमे।
तत्र प्रथमकूटे जिनेन्द्रगेहं स्त्रीलिङ्गाख्यकूटेषु व्यन्तरदेव्यो निवसन्ति।
शेषेषु तत्वूकूटनामव्यन्तरदेवा निवसन्ति।।७२२।।
वट्टा।
ते सर्वेकूटाः वृत्ताः रत्नमयाः स्वकीय स्वकीयनगस्य चतुर्थांशोदयाः
तावन्मात्रभूविस्तारास्तदर्धवदनाः सर्वत्र खलु भवन्ति।।७२३।।
तो सिद्ध महाहिमवं हेमवदं रोहिदा हिकूडं।
हरिवंता हरिवरिसं वेलुरियं पच्छिमंकूडं।।७२४।।
ततः सिद्ध महाहिमवान् हैमवतं रोहिता ह्रीकूटं।
हरिकान्ता हरिवर्ष वैडूर्यं पश्चिमंकूटं।।७२४।।
तो।
पश्चिमं चरमं इत्यर्थः।
शेषं छायामात्रमेवार्थः।।७२४।।
सिद्धं णिसहं च हरिवरिसं पुव्वविदेह हरिधिकूडं।
सीतोदा णाममदो अवरविदेहं च रुजगंतं।।७२५।।
सिद्धं निषधं च हरिवर्ष पूर्वविदेहं हरिधृतिकूटं।
सीतोदा नाम अतः अपरविदेहं च रुचकान्तम्।।७२५।।
सिद्धं।
सिद्धं निषधं च हरविर्षं पूर्वविदेहं हकूटं
धृतिकूटं सीतोदा नाम अतोऽपरविदेहं चान्तं रुचवं।।७२५।।
सिद्धं णीलं पुव्वविदेहं सीदा य कित्ति णरवता।
अवरविदेहं रम्मगमपदंसणमंतिमं णीले।।७२६।।
सिद्धं नीलं पूर्वविदेहं सीता च कीर्तिः नरकान्ता।
अपरविदेहं रम्यवं अपदर्शनं अन्तिमं नीले।।७२६।।
सिद्धं।
छायामात्रमेवार्थः।।७२६।।
सिद्धं रुम्मी रम्मग णारी बुद्धी य रुप्पकूलक्खा।
हेरण्णंकूवडमदो मणिवंचणमट्ठमं होदि।।७२७।।
सिद्धं रुक्मी रम्यवं नारी बुद्धिश्च कूवूलाख्या।
हैरण्यंकूवूटमतो मणिकाञ्चनमष्टमं भवति।।७२७।।
सिद्धं।
छायामात्रमेवार्थः।।७२७।।
सिद्धं सिहरि य हेरण्णं रसदेवी तदो य रत्तक्खा।
लच्छी सुवण्ण रत्तवदी गंधकूय कूडमदो।।७२८।।
एरावदमणिकूचणवूडं सिहरिम्हि सव्वसेलाणं।
मूले सिहरेवि हवे दहेवि वणसंडमेदस्स।।७२९।।
गिरिदीहो जोयणदलवासो वेदी दुकोसतुंगजुदा।
धणुपणसयवासा णगवणणदिदहपहदिएसु समा।।७३०।।
सिद्धं शिखरी च हैरण्यं रसदेवी ततश्च रक्ताख्या।
लक्ष्मीः सुवर्णं रक्तवती गन्धकू कूटमतः।।७२८।।
ऐरावतमणिकाकूनवूटं शिखरे सर्वशैलानाम्।
मूले शिखरेऽपि भवेत् ह्रदेऽपि वनखण्डमेतस्य।।७२९।।
गिरिदैघ्र्यं योजनदलव्यासं वेदी द्विक्रोशतुङ्गयुता।
धनुः पञ्चशतव्यासा नगवननदीह्रदप्रभुतिषु समाः।।७३०।।
सिद्धं।
छायामात्रमेवार्थः।।७२८।।
एरावद।
ऐरावतं मणिकाकूनकूटं ११ शिखरे पर्वते सर्वेषां शैलानां
मूले शिखरेऽपि ह्रदेऽपि वनखण्डं भवेत्।
एतस्य वनखण्डत्य।।७२९।।
गिरि।
गिरिदैघ्र्यमेव दैघ्र्यं योजनार्धव्यासं तस्यवेदी तु धनुः
पञ्चशतव्यासा क्रोशद्वयोत्तुङ्गयुता स्यात्।
सा वेदी नगवननदीह्रदप्रभुतिषु सर्वत्र समाना।।७३०।।
अब हिमवन् आदि कुलाचल और विजयार्धों के ऊपर स्थिकू कूटों की संख्यादि कहते हैं- गाथार्थ-हिमवदादि पर्वतो पर क्रमशः ग्यारह, आठ, नौ, नौ, आठ और ग्याकूरह कूट हैं तथा विजयार्ध पर्वतों के ऊकूनौ-नौ कूट हैं। पूर्व दिशा कून्धी कूटों पर जिनभवन हैं।।७२०।
विशेषार्थ–हिमवन् पर्वत के ऊपर ११, महाहिमवन् पर ८, निषध पर ९, नील कुलाचल पर ९, रुक्मी कुलाचल पर ८ और शिखरिन् कुलाचकूर ११ कूट अवस्थित हैं। प्रत्येक विजयार्ध पर्वत कू९, ९ कूट कू।
ये कूट पर्वतों के ऊपर और गोल आकार के होते हैं। ये नीचे बहुत चौड़े और उपरिम भाग में कम चौड़े होते हैं। पूर्व दिशागत सिद्धायकूनामा कूटों के ऊपर जिनमन्दिर हैं। उपकूक्त कूटों के नामादिक दश गाथाओं द्वारा कहते हैं-
गाथार्थ-(हिमवन् कुलाचल के ऊपर स्थिकू ११ कूटों के नाम) क्रम से१ सिद्धायतन, २ हिमवान्, ३ भरत, ४ इला, ५ गङ्गाकू६ श्रीकूट, ७ रोहितास्या, ८ सिन्धुकू ९ सुराकूट, १० हैमवतक, और वैश्रवण हैं।
कू प्रथम कूट पर जिनेन्द्र भवन, स्त्री लिङ्गकूमधारी कूटों पर व्यन्तर देवियाँकूऔर शेकूटों पर कूट नामधारी व्यन्तर देव निवास करते हैंकूवे सर्व कूट गोल और रत्नकूहैं। सर्व कूटों की ऊँचाई अपने-अपने पर्वतों की उँचाई का चतुर्थ भाग है। भू व्यास भी इतना ही है तथा मुखव्यास भूव्यास का अर्ध प्रमाण है।।७२१, ७२२, ७२३।।
विशेषार्थ-क्रम से सिद्धायतन, हिमवान्, भरत, इलाकूगंगा, श्रीकूट, रोहितास्या, सिन्धु, सुरा, हैमवतक और कूवण ये ११ कूट हिमवन् कुलाचल के ऊपर स्थित हैं। इनमें से प्रथकूद्धायतन कूट के ऊपर जिन मन्दिर हैं, तथा स्त्री िलग नाम धारी इलाकूगा श्रीकूट, रोहितास्या, सिन्धुकूर सुरा कूटों पर व्यन्तर देवांगनाएँ निवास करती हैंकूर अवशेष कूटों पकूपने-अपने कूटनामधारी व्यन्तर देव रहते हैंकू वे सर्व कूट रत्नमय और गोल आकारकूले हैं।
इन कूटों की उँचाई अपने पर्वत की उँचाई के चौथाई भाग प्रमाण हैं, उँचाई प्रमाण सदृश ही भू-व्यास और भू-व्यास के अर्धभाग प्रमाण मुख व्यास है। हिमवन् पर्वत १०० योजन कूचा है, अतः कूटों की उँचाई १००/४ · २५ योजन, जमीन पर चौड़ाई २५ योजन और ऊपर की चौड़ाई १२-१/२ योजन प्रमाण है।
गाथार्थ-(महाहिमवन् पर्वत कू १ सिद्धकूट २ महाहिमवन् ३ हैमवत ४ रोकूता ५ ह्रीकूट ६ हरिकान्ता ७ हरिवर्ष ८कूडूर्य नामके कूट हैं।।७२४।।
विशेषार्थ- कूपर्युक्त आठ कूटोंकूमें से सिद्ध कूट पर जिनभवन हैकूस्त्रीलिंगधारी कूटों पर (व्यन्तर)कूवांगनाएँ और शेष कूटों पर व्यन्तर देवों काकूवास है। इन सभी कूटों की उँचाई ५० योजन, भूव्यास ५० योजन और मुखव्यास २५ योजन कू
गाथार्थ-१ सिद्धकूट, २ निषध, ३ हरिवर्ष, कूर्वविदेह,कूहरिकूट, ६ धृकूकूट, ७ सीतोदाकूट, ८ अपर विदेह वूकू और अन्तिम रुचक कूट निषध पर्वत पर हैं।।७२५।।
विशेषार्थ-जिनगृह और देवों के निवास आदि पूर्वोक्त प्रकार हीकू किन्तु यहाँ के कूटों की उँचाई १०० योजन, भूव्यास १०० योजन और मुखव्यास ५० योजन है।
गाथार्थ-१ सिद्ध २ नील ३ पूर्वविदेह ४ सीता ५ कीर्ति ६ नरकान्ता ७ अपरविदेह ८ रम्यक और अन्तिकू ९ अपदर्शन ये ९ कूट नील पर्वत के ऊपर हैं।।७२६।।
विशेषार्थ-इनका सर्व विशेष वर्णकू निषध पर्वत स्थित कूटों के समान ही है।
गाथार्थ-१ सिद्ध २ रुक्मी ३ रम्यक कूरी ५ बुद्धिकूरुप्यकूला ७ हैरण्यकूटकू ८ मणिकाञ्चन ये आठ कूट रुक्मी कुलाचल के ऊपर हैं।।७२७।।
विशेषार्थ-इनका सभी वर्णन महाकूवन् पर्वत पर स्थित कूटों के समान ही है।
गाथार्थ-१ सिद्धायतन २ शिखरी ३ हैरण्य ४ रसदेवी ५ रक्तानाम ६ लक्ष्मी ७ सुवर्ण ८ रक्तवती ९ गन्धवती १० ऐरावकू१ मणिकाञ्चन, ये ११ कूट शिखरिन पर्वत पर स्थित है। सभी पर्वतों के मूल में, शिखर पर और ह्रदों के चारों ओर वन हैं। इन वनखण्डों की लम्बाई अपने-अपने पर्वतों की लम्बाई प्रमाण है, तथा व्यास (चौड़ाई) अर्ध योजन प्रमाण है।
वनखण्डों की वेदी दो कोश उँची और ५०० धनुष चौड़ी है। पर्वत, वन नदी और ह्रद आदि सभी की वेदियों का प्रमाण समान है।।७२८, ७२९, ७३०।।
विशेषार्थ–शिखरिन् पर्वकूस्थित उपर्युक्त ११ कूटों की उँचाई आदि का तथा उनमें निवास करने वाले व्यन्तर आदि देवों का कून हिमवन् शैल स्थित कूटों के सदृश ही है। समस्त कुलाचलों के मूल भाग में और शिखर अर्थात् उपरिम भाग में तथा द्रहों के चारों ओर भी वन हैं।
इन वन खण्डों की लम्बाई कुलाचलों की लम्बाई प्रमाण और चौड़ाई अर्ध योजन है। वन खण्डों की वेदी दो कोश उँची और ५०० धनुष चौड़ी है। पर्वत, वन, नदी और ह्रद आदि सभी की वेदियों का प्रमाण (उँचाई और चौड़ाई) सदृश ही है।
विशेषार्थ—जम्बूद्वीप में ३११ पर्वतों की ३११ ही मणिमय वेदियाँ हैं तथा ९० कुण्डों की ९० और २६ द्रहों की २६ ही मणिमय वेदियाँ हैं। नदियों के अपने प्रमाण से वेदियों का प्रमाण दूना है।
इसी कहे हुए अर्थ का विशेष वर्णन करते हैं—जम्बूद्वीप में १ सुदर्शन मेरु, ६ कुलाचल, ४ यमकगिरि, २०० काञ्चन पर्वत, ८ दिग्गज पर्वत, १६ वक्षार पर्वत, ४ गजदन्त, ३४ विजयार्ध पर्वत, ३४ वृषभाचल और ४ नाभिगिरि हैं, इन सबका योग करने पर (१ ± ६ ± ४ ± २०० ± ८ ± १६ ± ४ ± ३४ ± ३४ ± ४)·३११ पर्वत होते हैं।
गङ्गा, सिन्धु, रोहित्, रोहितास्या आदि चौदह महानदियाँ कुलाचल पर्वतों से जहाँ नीचे गिरती हैं वहाँ (नीचे) कुण्ड हैं जिनकी संख्या १४ है।
बारह विभङ्गा नदियों के उत्पत्ति कुण्डों की संख्या १२, बत्तीस विदेह देशों में से प्रत्येक देश में गंगा सिन्धु समान दो-दो नदियाँ कुण्डों से निकलती हैं, अतः वहाँ के कुण्डों का प्रमाण ६४ है, इस प्रकार ये सब (१४ ± १२ ± ६४) · ९० कुण्ड होते हैं।
छह कुलाचलों पर ६ ह्रद, सीता नदी में १० और सीतोदा नदी में भी १० इस प्रकार कुल ह्रदों की संख्या (६ ± १० ± १०) · २६ है। भरतैरावत क्षेत्र स्थित गंगा-सिन्धु, रक्ता और रक्तोदा इन चार महानदियों में से प्रत्येक की परिवार नदियाँ १४००० हैं अतः अपने गुणकार का गुणा करने पर कुल प्रमाण (१४००० ² ४) · ५६००० हुआ।
हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्र स्थित रोहिकू रोहितास्याकूस्वर्णकूला और रूप्यकूला, इन प्रत्येक की सहायक २८००० नदियाँ हैं अतः परिवार नदियों का कुल प्रमाण (२८००० ² ४) · १,१२००० हुआ। हरि और रम्यक क्षेत्र स्थित हरित् हरिकान्ता, नारी और नरकान्ता, इन प्रत्येक की परिवार नदियाँ ५६००० हैं अतः उनका कुछ प्रमाण (५६००० ² ४) · २,२४००० हुआ।
देवकुरु उत्तरकुरु स्थित सीता-सीतोदा में प्रत्येक की परिवार नदियाँ ८४००० हैं अतः उनका कुल प्रमाण (८४००० ² २) · १,६८००० हुआ।
बारह विभङ्गा नदियों में प्रत्येक की परिवार नदियाँ २८००० हैं अतः २८००० ² १२ · ३,३६००० परिवार नदियों का प्रमाण हुआ। बत्तीस विदेह देशों में गंगा-सिन्धु, रक्ता और रक्तोदा नाम की ६४ नदियाँ हैं तथा प्रत्येक की परिवार नदियाँ १४००० हैं अतः इनकी परिवार नदियों का कुल प्रमाण (१४००० ² ६४) · ८,९६००० हुआ।
इन सम्पूर्ण परिवार नदियों का योग करने पर (५६००० ± ११२००० ± २२४००० ± १६८००० ± ३३६००० ± ८९६०००) · १७,९२००० कुल प्रमाण प्राप्त हुआ। यहाँ गुणकारस्वरूप मुख्य नदियों का प्रमाण (४ ± ४ ± ४ ± २ ± १२ ± ६४) · ९० है। परिवार नदियों के प्रमाण में इन मुख्य नदियों का प्रमाण मिला देने पर (१७,९२००० ± ९००) · १७,९२,०९० जम्बूद्वीप स्थित सम्पूर्ण नदियों का प्रमाण प्राप्त हुआ।