कोसा।कूद्धकूट स्योपरि क्रोशायामं २००० तदर्धविस्तारं १०००।
चतुर्थांश ५०० हीनक्रोशोदयं १५०० पूर्वमुखं रम्यं जिनेन्द्रगेहं संस्थितं।।७३६।।
भरत-ऐरावत के विजयार्धके कूट के नाम
भरतैरावत स्थित विजयार्धोंकू के वूकूट र उन पर अवस्थित देवों का वर्णन चार गाथाओं द्वारा करते हैं— गाथार्र्थकू१. सिद्धवूकूट २. दकूणार्ध भरतवूकूट ३. खण्डप्रपात, ४. पूर्णभद्र, ५. विजयार्धकुमार, ६. मकूद्र नामा वूकूट ७कूमिस्रगुह वूकूट कूउत्तरभरत वूकूट र अन्तिकू वैश्रवण वूकूट भरतक्षेत्र स्थित विजयार्धकूत पर ९ कूट , तकू१ सिद्धकूट उत्तराकू ऐरावत कूट तमिस्रगुह, ४ मणिभद्र, ५ विजयार्धकुमार, ६ पूर्णभद्र, ७ खण्डप्रपात, ८ दक्षिणैरावतार्ध और ९ वैश्रवण ये ऐरावत क्षेत्र स्थित विजयार्ध पर्वत पर पूर्व दिशा से लगाकर क्रमपूर्वक हैं।।७३२, ७३३, ७३४।। विशेषार्थ—उपकूक्त ९ कूटकूट रावत स्थित विजयार्ध पर्वतों पर हैं। ये पूर्व दिशा से प्रारम्भ कर क्रम से स्थित हैं। गाथार्थ—भरतैरावत स्थित विजयार्धों केकूभी १८ कूट कूट नमय हैं। इनमें से खण्डप्रकूत नामक कूट पकूट त्यमालकू तमिस्र कूट पकूट तमाल तथा कू अवशेष कूटोंकूट कू-अपने कूट नाकूट री व्यन्तर देव निवास करते हैं।।७३५।। उक्त विजयार्ध स्थित जिनालयों के उदय आदि तीन (उदय, व्यास और लम्बाई) कहते हैंकूसिद्ध कूटोंकूट एक कोश लम्बे, अर्ध कोश चौड़े तथा चतुर्थ भाग हीन अर्थात् पौन कोश उँचे, पूर्वाभिमुख अतिरमणीक जिन मन्दिर हैं।।७३६।। विशेषार्थ—भरतैरावत क्षेत्रों के दोनों विजयार्धों पर कूत सिद्धकूटटोंकूट ऊपर २००० धनुष (१ कोश) लम्बे, १००० धनुष (१/२ कोस) चौड़े और १५०० धनुष (३/४ कोश) उँचे, पूर्वाभिमुख रमणीक जिनमन्दिर हैं।