क्केक्कं जिणभवणं पुव्वम्हि व वण्णणेहिं जुदं।।१९३५।।
मानस्तम्भों में नीचे व ऊपर प्रतिमाएँ हैं
उन स्फटिकमणिमय वीथियों के मध्य में से प्रत्येक वीथी के प्रति विचित्र रूप वाले वैडूर्यमणिमय मानस्तम्भ सुशोभित हैं।।१९३१।।
चार वेदीद्वार और तोरणो से युक्त ये मानस्तम्भ ऊपर चँवर, घंटा, किंकिणी और ध्वजा इत्यादि से संयुक्त होते हुए शोभायमान होते हैं।।१९३२।।
इन मानस्तम्भों के नीचे और ऊपर चारों दिशाओं में विराजमान, उत्तम रत्नों से निर्मित और जग से कीर्तित चरित्र से संयुक्त जिनेन्द्र प्रतिमाएँ जयवन्त होवें।।१९३३।। मार्ग व अट्टालिकाओं से युक्त, नाना प्रकार की ध्वजापताकाओं के आटोप से सुशोभित और श्रेष्ठ रत्नसमूह से निर्मित कोट इस कल्पमही को वेष्टित करके स्थित है।।१९३४।।
चूलिका के दक्षिण, पश्चिम और उत्तर भाग में भी पूर्वदिशावर्ती जिनभवन के समान वर्णनों से संयुक्त एक-एक जिनभवन है।।१९३५।।