छह अभ्यंतर छह बाहिर से बारहविध तप आचार कहा। उनमें से अनशन अमोदर्य वृतपरिसंख्या रसत्याग कहा।। तनुपरित्याग-तनुक्लेश विविक्त शयनासन तप बाह्य कहे। प्रायश्चित विनय सुवैयावृत स्वाध्याय ध्यान व्युत्सर्ग कहे।। इन बारह तप को नहीं किया परिषह से पीड़ित छोड़ दिया। तप किरिया में जो हानी की वह दुष्कृत मेरा हो मिथ्या।।३।।
बाह्य तप के छह भेद हैं—अनशन, अवमौदर्य, वृत्तपरिसंख्यान रसपरित्याग कायक्लेश विविक्त-शयनासन।
अभ्यंतर तप के छह भेद हैं— प्रायश्चित्त , विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान , व्युत्सर्ग।
यही क्रम षट्खण्डागम की पुस्तक-१३ में सूत्र २५-२६ में तपों का वर्णन करते हुये पृ. ५४ से पृ. ८८ तक श्री गौतमस्वामी का ही क्रम लिया है।
सूत्रार्थ—वह तपःकर्म बाह्य और आभ्यन्तर के भेद से बारह प्रकार का है।मूलाचार में बाह्यतप के नाम बतलाकर उनका क्रम से विस्तृत विवेचन करके अंतरंग तप के नाम बतलाकर क्रम से विस्तृत विवेचन किया है—
प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग -ये अभ्यन्तर तप हैं।।३६०।। अनंतर श्री उमास्वामी आचार्य ने तत्त्वार्थसूत्र में क्रम में अन्तर किया है—
इन दोनों सूत्रों में पांचवें नंबर पर विविक्त शयनासन एवं छठे पर कायक्लेश लिया है ऐसे ही अभ्यंतर तप में पांचवें नंबर पर व्युत्सर्ग एवं छठे नंबर में ध्यान लिया है। प्रतिक्रमण पाठ एवं मूलाचार के टीकाकारों ने भी अपने मूलग्रन्थ के आधार से ही टीका की है। एवं तत्त्वार्थसूत्र के सभी टीकाकारों ने सूत्र के अनुसार ही क्रम रखा है। आजकल किन्हीं विद्वानों ने प्रतिक्रमण पाठ में तत्त्वार्थसूत्र का क्रम रखकर मूल पाठ बदल दिया है। यह सर्वथा अनुचित है। हमें और आपको पूर्वाचार्यों की मूल कृतियों में संशोधन, परिवर्तन या परिवर्धन नहीं करना चाहिये। १२ तप के क्रम में अन्तर श्री गौतमस्वामी आदि कथित श्री उमास्वामी आचार्य कथित बाह्यतप बाह्यतप १. अनशन १. अनशन २. अवमौदर्य २. अवमौदर्य ३. वृत्तपरिसंख्यान ३. वृत्तपरिसंख्यान ४. रसपरित्याग ४. रसपरित्याग ५. कायक्लेश ५. विविक्तशय्यासन ६. विविक्तशयनासन ६. कायक्लेश अभ्यंतर तप अभ्यंतर तप १. प्रायश्चित्त १. प्रायश्चित्त २. विनय २. विनय ३. वैयावृत्य ३. वैयावृत्य ४. स्वाध्याय ४. स्वाध्याय ५. ध्यान ५. व्युत्सर्ग ६. व्युत्सर्ग ६. ध्यान