आदिपुराण भाग २ में श्रावकों के ६ आर्यकर्म का वर्णन है—
इज्यां वार्तां च दत्ति च स्वाध्यायं संयमं तपः। श्रुतोपासकसूत्रत्वात् स तेभ्यः समुपादिशत्।।२४।।
अर्थ — भरत ने उन्हें अर्थात् व्रती श्रावकों को उपासकाध्ययनांग से इज्या, वार्ता, दत्ति, स्वाध्याय, संयम और तप का उपदेश दिया। अन्यत्र ग्रन्थों में श्रावकों की षट्क्रियायें मानी हैं— देवपूजा गुरूपास्ति, स्वाध्याय , संयम , तप , दान । पद्मनन्दिपञ्चविंशतिका ग्रन्थ में श्रावकाचार अधिकार में श्रावकों के षट् आवश्यक कर्म बताए हैं—
देवपूजा गुरूपास्तिः स्वाध्यायः संयमस्तपः। दानञ्चेति गृहस्थाणां षट् कर्माणि दिने दिने।।७।।