जन्म भूमि | भद्रपुरी | प्रथम आहार | अरिष्ट नगर के राजा पुनर्वसु द्वारा (खीर) |
पिता | महाराजा दृढ़रथ | केवलज्ञान | पौष कृ. १४ |
माता | महारानी सुनन्दा | मोक्ष | आश्विन शु. ८ |
वर्ण | क्षत्रिय | मोक्षस्थल | सम्मेद शिखर पर्वत |
वंश | इक्ष्वाकु | समवसरण में गणधर | श्री अनगार आदि ८१ |
देहवर्ण | तप्त स्वर्ण सदृश | मुनि | एक लाख (१०००००) |
चिन्ह | श्रीवृक्ष (कल्पवृक्ष) | गणिनी | आर्यिका धरणा |
आयु | एक लाख पूर्व वर्ष | आर्यिका | तीन लाख अस्सी हजार (३८००००) |
अवगाहना | तीन सौ साठ (३६०) हाथ | श्रावक | दो लाख (२०००००) |
गर्भ | चैत्र कृ. ८ | श्राविका | तीन लाख (३०००००) |
जन्म | माघ कृ. १२ | जिनशासन यक्ष | ब्रह्मेश्वर देव |
तप | माघ कृ. १२ | यक्षी | मानवी देवी |
दीक्षा -केवलज्ञान वन एवं वृक्ष | सहेतुक वन एवं बेलवृक्ष |
पुष्करवरद्वीप के पूर्वार्ध भाग में मेरू पर्वत के पूर्व विदेह में सीता नदी के दक्षिण तट पर ‘वत्स’ नाम का एक देश है, उसके सुसीमा नगर में पद्मगुल्म नाम का राजा रहता था। किसी समय बसन्त ऋतु की शोभा समाप्त होने के बाद राजा को वैराग्य हो गया और आनन्द नामक मुनिराज के पास दीक्षा लेकर विपाकसूत्र तक अंगों का अध्ययन किया, तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध करके आरण नामक स्वर्ग में इन्द्र हो गया।
इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में मलयदेश के भद्रपुर नगर का स्वामी दृढ़रथ राज्य करता था, उसकी महारानी का नाम सुनन्दा था। रानी सुनन्दा ने चैत्र कृष्णा अष्टमी के दिन उस आरणेन्द्र को गर्भ में धारण किया एवं माघ शुक्ल द्वादशी के दिन भगवान शीतलनाथ को जन्म दिया।
भगवान ने किसी समय वन विहार करते हुए क्षणभर में पाले के समूह (कुहरा) को नष्ट हुआ देखकर राज्यभार अपने पुत्र को सौंपकर देवों द्वारा लाई गई ‘शुक्रप्रभा’ नाम की पालकी पर बैठकर सहेतुक वन में पहुँचे और माघ कृष्ण द्वादशी के दिन स्वयं दीक्षित हो गये। अरिष्ट नगर के पुनर्वसु राजा ने उन्हें प्रथम खीर का आहार दिया था।
अनन्तर छद्मस्थ अवस्था के तीन वर्ष बिताकर पौष कृष्ण चतुर्दशी के दिन बेल वृक्ष के नीचे केवलज्ञान को प्राप्त कर लिया। अन्त में सम्मेदशिखर पहुँचकर एक माह का योग निरोध कर आश्विन शुक्ला अष्टमी के दिन कर्म शत्रुओं को नष्ट कर मुक्तिपद को प्राप्त हो गये।