साधुओं के २८ मूलगुणों मे पंचमहाव्रत, पांच समिति, पांच इन्द्रिय- निरोध , छह आवश्यक क्रियाएं एंव सात शेष गुण है । उन पांच समितियों में एक ईर्यासमिति है ।
प्रासुक मार्ग से दिन में चार हाथ प्रमाण देखकर अपने कार्य के लिए प्राणियों को पीड़ा नहीं देते हुए संयमी का जो गमन है वह ईर्यासमिति है । मार्ग , नेत्र , सूर्य का प्रकाश, ज्ञानादि में यत्न, देवता आदि आलम्बन – इनकी शुद्धता से तथा प्रायश्चित्त आदि सूत्रों के अनुसार से गमन करते हुए मुनि के ईर्यासमिति होती है ऐसा आगम के कहा गया है । जीवस्थान आदि की विधि को जानने वाले, धर्मार्थ प्रयत्नशील साधु का सूर्योदय होने पर चक्षुरिन्द्रिय के दिखने योग्य मनुष्य आदि के आवागमन के द्वारा कुहरा क्षुद्र जन्तु आदि से रहित मार्ग में सावधान चित्त हो शरीर संकोच करके धीरे – धीरे चार हाथ जमीन आगे देखकर पृथ्वी आदि के आरम्भ से रहित गमन करना ईर्यासमिति है