जैन धर्म की प्राचीनता और स्वतन्त्रता के विषय में समय—समय पर अदालतों में पेश किए गए देश की उच्चतम एवं प्रदेशों की उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों ने निष्पक्ष होकर जैनधर्म के बारे में जो अपने सटीक निर्णय प्रस्तुत किए थे, उनकी संक्षिप्त जानकारी यहाँ दी जा रही है— १९२७—मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा AIR १९२७ मद्रास २२८ मुकदमें के निर्णय में ‘‘जैनधर्म को स्वतंत्र, प्राचीन व ईसा से हजारों वर्ष पूर्व का माना।’’ १९३९—बम्बई उच्च न्यायालय ने बम्बई ३७७ मुदकमें के निर्णय में कहा है कि ‘‘जैनधर्म वेदों को स्वीकार नहीं करता है, श्राद्धों को नहीं मानता है व अनुसंधान बताते हैं कि भारत में जैनधर्म ब्राह्मण धर्म से पहले था।’’ बम्बई सरकार ने १९ अगस्त, १९४८ की अपनी अधिसूचना में इस तथ्य को स्वीकार किया कि ‘‘यद्यपि जैनों पर हिन्दू लॉ लागू है परन्तु जैनों को हिन्दुओं के रूप में वर्णिम नहीं किया जा सकता।’ १९५१—बुम्बई हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एम. सी. छगला और न्यायामूर्ति गजेन्द्र गड़कर ने याचिका ९१/१/१९५१ पर यह निर्णय दिया कि ‘‘हरिजनों को जैनों के मंदिरों में प्रवेश करने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वे हिन्दू मंदिर नहीं है, यह विदित है कि जैन हिन्दुओं से भिन्न मतावलम्बी हैं’’ १९५४—उच्चतम न्यायालय ने AIR १९५४ एण् २८२ के निर्णय में माना कि ‘‘भारत में जैनधर्म व बौद्ध अपनी पहचान रखते हैं व वैदिक धर्म से भिन्न हैं।’’ १९५८—उच्चतम न्यायालय ने केरल शिक्षा बिल मामले में कहा कि ‘‘जैन समाज अल्पसंख्यकता प्राप्त करने के लिए उपयुक्त है।’’ १९६३—उच्चतम न्यायालय ने ६४३ (v50c१०१) के निर्णय में कहा था कि हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई व जैनों में ब्राह्मण, बनिया व कायस्थ समुदाय के अलावा सभी समुदायों को सामाजिक व शैक्षिक रूप से पिछड़े माना गया है। १९६८—कलकत्ता उच्च न्यायालय ने AIR १९६८ कलकत्ता ७४ के निर्णय में कहा कि ‘जैन हिन्दू नहीं हैं केवल उनके फैसले हिन्दू लॉ के अनुसार किए जाते हैं। १९६८—कलकत्ता उच्च न्यायालय ने ७४ (vssc१४) के निर्णय में ‘‘जैनों को हिन्दू नहीं माना।’’ १९७५—उच्चतम न्यायालय ने AIR १९७५ ण् ९६ के निर्णय में ‘‘जैनों को दिल्ली में अपने शिक्षण संस्थनों का प्रबन्धन करने का’’ निर्णय दिया था। १९७६—दिल्ली उच्च न्यायालय ने AIR १९७६ दिल्ली २०७ के निर्णय में कहा था ‘‘संविधान का अनुच्छेद २५ जैनों को स्वतंत्र रूप से मानता है जो कि सर्वोच्च नियम है। १९९३—उच्चतम न्यायालय ने बाबरी मस्जिद मुकदमें के निर्णय में (१९९३, AIR १९५४) ‘‘जैनधर्म को अन्य अल्पसंख्यक धर्म की तरह हिन्दूधर्म से भिन्न माना था।’’ १९९५—उच्च न्यायालय ने AIR १९७५, एण् २०८९ के निर्णय में माना था कि—‘‘भारत में बौद्ध व जैनधर्म जाने पहचाने धर्म हैं जो ईश्वर के होने से विश्वास नहीं रखते।’’ २००३—उच्चतम न्यायालय ने AIR २००३ एण् ७२४ में कहा कि ‘‘राष्ट्रीय गान में जैनों को पृथक् रूप से दिखाया गया है।’’ २००६—भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायामूर्ति श्री एस. बी. सिन्हा और श्री दलबीर भण्डारी जी की खण्डपीठ ने अपने एक फैसले में कहा कि ‘‘यह अविवादित तथ्य है कि जैनधर्म हिन्दूधर्म का हिस्सा नहीं है। (दैनिक हिन्दुस्तान, नई दिल्ली २४—०८—२००६) ( श्रुतसंवर्धिनी- अगस्त,२०१३ से )