मूल शरीर को न छोड़कर तैजस – कार्माणरूप उत्तर देह के साथ साथ जीव प्रदेशों के शरीर से बाहर निकलने को समुद्घात कहते हैं ।
समुद्घात के सात भेद है – वेदना, कषय, वैक्रियक, मारणांतिक, तैजस, आहारक और केवली ।
धवला पुस्तक में लिखा है – हस्त प्रमाण सर्वांग सुन्दर, समचतुरस – संस्थान से युक्त , हंस के समान, धवल, रस, रूधिर, मांस, मेदा, अस्थि, मज्जा और शुक्र इन सात धातुओं से रहित, विष अग्नि एवं शस्त्रादि समस्त बाधाओं से मुक्त, वङ्का, शिला, स्तम्भ, जल व पर्वतों मे से गमन करने में दक्ष, तथा मस्तक से उत्पन्न हुए शरीर से तीर्थंकर के पादमूल में जाने का नाम आहारक समुद्घात है ।