# चौके का स्थान शुद्ध हो, प्रकाश पर्याप्त मात्रा में हो।
# जल दोहरे मोटे छन्ने से छना हो तथा उबाल कर रखें।
# शुद्ध सोले के कपड़े से भोजन बनायें।
# नाखून बड़े न हों, बाल खुले न हों, सिर ढका हो।
# फल—सब्जी आदि को प्रासुक जल से धोकर काम में लें।
# आहार सम्बन्धि कार्य सूर्योदय के ४८ मिनट के बाद प्रारंभ होता है।
# आहार देने से पूर्व दाता प्रथम हाथ जोड़कर मनशुद्धि, वचनशुद्धि, कायशुद्धि, आहार-जल शुद्ध है, ऐसा बोलकर नमस्कार करें पुन: प्रासुक जल से हाथ धोकर स्वच्छ कपडे से हाथ पोंछ लें तभी आहार देना चाहिए।
# पदार्थ देते समय देख लें कि कही वह पदार्थ अतिगर्म अथवा अतिशीतल तो नहीं है।
# चौके में प्रयुक्त बर्तन से स्टीकर आदि हटा देना चाहिए।
# उपवास या अन्तराय के बाद पारणां के दिन साधु को जितना सहन हो सके उतना गर्म पानी, उकाली, दूध आदि लाभदायक होता है। ठण्डा जल, शिकंजी आदि नहीं।
# चौके में शुद्धता का ध्यान रखें। पानी आदि न फैलायें।