यहाँ तेरहवें गुणस्थान में केवलज्ञान प्रगट हो जाता है और क्षायिक भावरूप नवकेवललब्धियाँ प्रकट हो जाती हैं । ये परमात्मा अरिहंत परमेष्ठी कहलाते हैं। कुछ अधिक आठ वर्ष कम एक कोटिपूर्व वर्ष तक इस गुणस्थान में केवली भगवान रह सकते हैंं ।