(भागहार का एक भेद )
संसारी जीवों के अपने जिन परिणामों के निमित्त से शुभकर्म और अशुभकर्म संक्रमण करें अर्थात् अन्य प्रकृति रूप परिणमें उसको भागहार कहते हैं । उसके उद्वेलन, विध्यात, अध:प्रवृत्त, गुणसंक्रमण और सर्वसंक्रमण के भेद से पाँच भेद हैं ।
गोम्मटसार कर्मकाण्ड में उद्वेलन प्रकृतियां बताई हैं-
आहारदुगं सम्मं मिस्सं देवदुगणारयचडककं ।
उच्चं मणुदुगमेदे तेरस उव्वेल्लणा पयडी ।।
आहारकयुगल, सम्यक्तवमोहनीय, मिश्रमोहनीय, देवगति का जोड़ा, नरक गति का चतुष्क, उच्चगोत्र और मनुष्यगति का युगल ये १३ उद्वेलन प्रकृतियां हैं ।