चेतना की परिणति विशेष का नाम उपयोग है । चेतना सामान्य गुण है और ज्ञान दर्शन ये दो इसकी पर्याय या अवस्थाएं है । इन्हीं को उपयोग कहते हैं । उपयोग दो प्रकार का है , द्रव्य संग्रह में श्री नेमिचंदसिद्धान्त चक्रवर्ती ने लिखा है – उराओगो दुवियप्पो, दंसण णाणं च दंसणं चदुधा । चक्खु अचक्खू ओही, दंसण मध केवलं णेयं । ’’ उपयोग दो प्रकार का है दर्शनोपयोग और ज्ञानापयोग । उसमें दर्शनोपयोग चक्षुरदर्शन, अचक्षुदर्शन अवधिदर्शन और केवलदर्शन के भेद से चार प्रकार का है और मतिअज्ञान, श्रुत अज्ञान , कुअवधिज्ञान, मति श्रुत, अवधि मन:पर्यय और केवलज्ञान इनके भेद से ज्ञानोपयोग आङ्ग प्रकार का है । व्यवहार नय से यह बारह प्रकार का उपयोग सामान्यतया जीव का लक्षण है और शुद्ध निश्चय नय से शद्ध दर्शन ज्ञान ही जीव का लक्षण है