व्यक्ति के गुणों को देखते हुए उन्हें सम्मान पत्र प्रदान करना उपाधि है । भगवान ऋषभदेव को एक वर्ष के उपवास के पश्चात् जब हस्तिनापुर में राजा श्रेयांस ने प्रथम आहार दिया तो समस्त पृथ्वीमण्डल पर हस्तिनापुर के नाम की धूम मच गई सर्वत्र राजा श्रेयांस की प्रशंसा होने लगी । अयोध्या से भरत चक्रवर्ती ने आकर राजा श्रेयांस का भव्य समारोह पूर्वक सम्मान किया तथा उन्हें दान तीर्थ प्रवर्तक की पदवी से – उपाधि से अलंकृत किया ।
श्री नेमीचन्द्र आचार्य को सिद्धांत चक्रवर्ती की उपाधि से अलंकृत किया ।
बीसवीं शताब्दी के प्रथम आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज को चारित्र चक्रवर्ती की उपाधि से अलंकृत किया ।
वर्तमान में पूज्य गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माता जी के ज्ञान गुण को , चारित्र गुण के पारमार्थिक कार्यकलाप को देखते हुए उन्हें युगपवर्तिका, चारित्र चन्द्रिका, आर्यिका शिरोमणि, श्रुततीर्थप्रकाशिका, तीर्थोद्धारिका, वात्सल्य मूर्ति, विधानवाचस्पति, सिद्धान्त कल्पतरूकलिका, डी़ लिट धर्ममूर्ति राष्ट्र गौरव , विश्व विभूति आदि अनेक उपाधियों से अलंकृत किया ।