मोक्षमार्ग से च्युत न होने और कर्मो की निर्जरा के लिए जो मानसिक व शारीरिक पीड़ाये किसी मोक्षार्थी को आती है उनको परिषह कहते हैं और उनका समभावों से सह लेना ‘परिषहजयं कहलाता है । परिषह के २२ भेद है –
तत्त्वार्थसूत्र ग्रन्थ में २२ परिषहों के नाम बताए है – ‘‘क्षुत्पिपासा – शीतोष्ण – दशंमशकनाग्न्या रति स्त्री – चर्या- निषद्या- शय्या – क्रोध- वध – याचनाऽलाभ – रोग –तृण स्पर्श – मल- सत्कार पुरस्कार प्रज्ञाज्ञाना दर्शनानि ।। ’’ अर्थात् क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण, दंशमशक, नाग्न्य , अरति, स्त्री , चर्या, निषद्या, शय्या , आक्रोश, वध, याचना, अलाभ , रोग तृणस्पर्श, मल, सत्कार, पुरस्कार , प्रज्ञा, अज्ञान और अदर्शन ये २२ परिषह है ।
मोक्षार्थी को इन विपत्तियों को मनस्थिर कर शान्त भावों से सहना चाहिए । उष्ण परिषह – तीव्र ग्रीष्म काल में तप्त मार्ग पर विहार करना उष्ण परिषह है ऐसा जलते हुए वन के बीच रहने पर भी एवं अन्य ऐसे अनेक प्रसंग होने पर भी भेद विज्ञान के बल से समता परिणाम में स्थिर होने को उष्ण परिषह जय कहते है ।