पर्व के दिन उपवास में रात्रि में प्रतिमायोग धारण करना ‘उपयोगिता’ क्रिया है । श्रावकाध्याय संग्रह में क्रियायें तीन प्रकार की कही है, सम्यग्दृष्टि पुरूषों को वे क्रियायें अवश्य ही करनी चाहिए क्योंकि वे सब क्रियायें उत्तम फल देने वाली है ।
आदिपुराण पर्व ३८ पृ २४४ पर लिखा है –
गर्भान्वयक्रियाश्चैव तथा दीक्षान्वय क्रिया: ।
कत्र्रन्वय क्रियाश्चेति तास्त्रिधैवं बुधैर्मता: ।।
गर्भान्वय क्रिया त्रेपन, दीक्षान्वय अड़तालीस एवं कत्र्रन्वय क्रियाएं सात है । दीक्षान्वय क्रियाओं में आठ क्रियाओं के नाम इस प्रकार है – अवतार, वृत्तलाभ, स्थानलाभ, गणग्रह, पूजाराध्य, पुष्ययज्ञ, दृढ़चर्या और उपयोगिता ।