जैन विद्वान शर्ववर्म की कृति
श्री शर्ववर्म कृत कलाप व्याकरण की टीका के रूप में ‘‘कातन्त्ररूपमाला’’ की रचना ‘‘वादिपर्वत वङ्का’’ श्रीमद् भावसेन त्रैविध के द्वारा हुई । उन्होेंने यह रचना ‘‘कातन्त्ररूपमालेयं बालबोधाय कथ्यते ’’ इस प्रतिज्ञा वाक्य के अनुसार बाल व्याकरण अनभिक्ष जनों को शब्द शास्त्र का ज्ञान कराने के लिए की थी । ग्रन्थ पूर्वाद्र्ध और उत्तराद्र्ध के भेद से दो भागों में विभक्त है । पूवाद्र्ध में ५७४ सूत्रों के द्वारा सन्धि, नाम प्रतिपादक, समास और तद्धित रूपों की सिद्धि की गयी है और उत्तरार्थ में ८०९ सूत्रों के द्वारा तिडन्त और कृदन्त रूपों की सिद्धि की गयी है । सुबोध शैली में लिखे जाने के कारण इसका प्रचार न केवल भारतवर्ष में अपितु विदेशों में भी था जिसके अनेक उदाहरण मिलते हैं ।
वर्तमान में कातन्त्र व्याकरण सबसे सरल मानी जाती है । इस व्याकरण के रचयिता शर्ववर्म गुणाद्य के समकालीन थे और इन्होंने सात बाहन राजा को पढ़ाने के लिए यह व्याकरण रची । कातन्त्ररूपमाला की हिन्दी टीका न्याय, सिद्धान्त, आचार और व्याकरणादि विषयों की प्रकाण्ड ज्ञाता गणिनीप्रमुख ज्ञानमती माता जी ने की है ।